tag:blogger.com,1999:blog-25573173950175948772024-03-19T15:05:01.668+05:30शोभा रानीShobha Sinhahttp://www.blogger.com/profile/01970011971472839425noreply@blogger.comBlogger220125tag:blogger.com,1999:blog-2557317395017594877.post-44669169588301054772018-12-17T18:07:00.003+05:302019-01-16T20:11:57.948+05:30This Blog has moved to a new Address - https://anandakandakripa.com<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
Dear Reader,<br />
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This website has moved. Please visit <a href="https://anandakandakripa.com/" target="_blank">AnandaKandaKripa.com</a> .<br />
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Regards,<br />
Shobha Sinha</div>
Shobha Sinhahttp://www.blogger.com/profile/01970011971472839425noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2557317395017594877.post-54118230221755874122018-11-15T22:57:00.001+05:302018-11-22T10:53:01.631+05:30दान का महत्व Dan ka mahatwa.<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
एक राजा तीर्थयात्रा के लिये चला।उसके काफिले में एक गरीब आदमी भी था।वह दो धोती,थोड़ा गेहूँ का आटा तथा कुछ गिने चुने सामान यात्रा के लिये साथ लाया था।उसने देखा सर्दी के कारन एक व्यक्ति काँप रहा है,उसने अपनी दो धोती मे से एक धोती उस व्यक्ति को दे दिया।धोती पाकर वह व्यक्ति बहुत ही प्रसन्न होकर आशीर्वाद देकर चला गया।सुबह के समय अत्यधिक सर्दी तथा दोपहर में कड़ी धूप होती थी।पर जब काफिला दोपहर में यात्रा कर रहा होता था,तब बादलों की छाया साथ-साथ उनके रहती थी।सब लोग कहते हमारे राजा साहब धर्मात्मा हैं , इसलिये ऐसा हो रहा है।<br>
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एक आदमी ने कहा - कौन जाने,किसका प्रताप है? यह बात राजा साहब के सामने रखी गयी।राजा ने भी कहा,बात तो ठीक ही है , न जाने किसका प्रताप है? इसलिये एक-एक आदमी चलो,देखें बादल किसके साथ चलता है?इस तरह एक-एक कर सब चले गये।परन्तु बादल वहीं ठहरा रहा क्योंकि वह गरीब जिसने अपनी दो धोती में ही एक धोती का दान किया था, वह वहाँ उस वक्त सोया हुआ था।जब वह चलने लगा तो बादल भी उसके पीछे-पीछे चलने लगा।अब यह निश्चय हो गया कि बादल इसी गरीब आदमी के ऊपर है।राजा ने उससे पूछा कि तुमने आखिर क्या दान किया किया कि बादल तुम्हारे साथ चला।गरीब आदमी बड़ी विनम्रता के साथ बोला,मैं गरीब आपलोगों का सहारा लेकर यहाँ तक आया हूँ,मेरे पास दान करने लायक कोई चीज ही नहीं,कि मैं पुण्य-धर्म करूँ।राजा ने कहा,तुम घर से क्या लाये थे,उसने कहा- दो धोती और थोड़ा आटा रास्ते के लिये।अब एक ही धोती है।राजा ने कहा ,दूसरी कहाँ गई।उसने कहा एक आदमी ठण्ढ से कष्ट पा रहा था,उसे दे दी।टोली में एक महात्मा भी साथ थे,उन्होंने कहा कि एक धोती दान का यह महात्म्य है।राजा ने कहा महाराज! मैं तो लाखों रुपये दान करता हूँ,महात्मा ने कहा- पुण्य धर्म का लाभ रूपयों के पीछे नहीं है।एक रूपये से जो लाभ मिल जाता है वो लाखों रूपये के दान में भी नहीं मिलता।दान का असली महत्व तो मौके पर,तथाअभाव में होते हुये भी दूसरे के दर्द को समझना,ये अधिक महत्व रखता है।</div>
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Shobha Sinhahttp://www.blogger.com/profile/01970011971472839425noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2557317395017594877.post-45398671251697525032018-11-15T22:56:00.001+05:302018-11-19T14:37:19.157+05:30Damodarashtakam<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<img src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEinLgagq12E7iYe89O9sba7VLANPYqmFREEaLbCzsthqbW9z2YCYU2XkaA9IGBzTFiXg4-ewoLaF3NZAPLzzTDZJM6S0j7e2GOZ-5pQKeO0bGmYaM1A-YI39uf5n-UJOj9Od5B0YUz6EBg/s400/Screenshot.png"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEinLgagq12E7iYe89O9sba7VLANPYqmFREEaLbCzsthqbW9z2YCYU2XkaA9IGBzTFiXg4-ewoLaF3NZAPLzzTDZJM6S0j7e2GOZ-5pQKeO0bGmYaM1A-YI39uf5n-UJOj9Od5B0YUz6EBg/s1600/Screenshot.png"></a></div>
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वह भगवान जिनका रूप सत, चित और आनंद से परिपूर्ण है, जिनके मकरो के आकार के कुंडल इधर उधर हिल रहे है, जो गोकुल नामक अपने धाम में नित्य शोभायमान है, जो (दूध और दही से भरी मटकी फोड़ देने के बाद) मैय्या यशोदा की डर से ओखल से कूदकर अत्यंत तेजीसे दौड़ रहे है और जिन्हें यशोदा मैय्या ने उनसे भी तेज दौड़कर पीछे से पकड़ लिया है ऐसे श्री भगवान को मै नमन करता हू ।।1।।</div>
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(अपने माता के हाथ में छड़ी देखकर) वो रो रहे है और अपने कमल जैसे कोमल हाथो से दोनों नेत्रों को मसल रहे है, उनकी आँखे भय से भरी हुयी है और उनके गले का मोतियो का हार, जो शंख के भाति त्रिरेखा से युक्त है, रोते हुए जल्दी जल्दी श्वास लेने के कारण इधर उधर हिल-डुल रहा है , ऐसे उन श्री भगवान् को जो रस्सी से नहीं बल्कि अपने माता के प्रेम से बंधे हुए है मै नमन करता हु ।।</div>
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ऐसी बाल्यकाल की लीलाओ के कारण वे गोकुल के रहिवासीओ को आध्यात्मिक प्रेम के आनंद कुंड में डुबो रहे है, और जो अपने ऐश्वर्य सम्पूर्ण और ज्ञानी भक्तो को ये बतला रहे है की "मै अपने ऐश्वर्य हिन और प्रेमी भक्तो द्वारा जीत लिया गया हु", ऐसे उन दामोदर भगवान को मै शत शत नमन करता हु ।। </div>
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हे भगवन, आप सभी प्रकार के वर देने में सक्षम होने पर भी मै आप से ना ही मोक्ष की कामना करता हु, ना ही मोक्षका सर्वोत्तम स्वरुप श्री वैकुंठ की इच्छा रखता हु, और ना ही नौ प्रकार की भक्ति से प्राप्त किये जाने वाले कोई भी वरदान की कामना करता हु । मै तो आपसे बस यही प्रार्थना करता हु की आपका ये बालस्वरूप मेरे हृदय में सर्वदा स्थित रहे, इससे अन्य और कोई वस्तु का मुझे क्या लाभ ?</div>
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हे प्रभु, आपका श्याम रंग का मुखकमल जो कुछ घुंघराले लाल बालो से आच्छादित है, मैय्या यशोदा द्वारा बार बार चुम्बन किया जा रहा है, और आपके ओठ बिम्बफल जैसे लाल है, आपका ये अत्यंत सुन्दर कमलरुपी मुख मेरे हृदय में विराजीत रहे । (इससे अन्य) सहस्त्रो वरदानो का मुझे कोई उपयोग नहीं है ।</div>
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हे प्रभु, मेरा आपको नमन है । हे दामोदर, हे अनंत, हे विष्णु, आप मुझपर प्रसन्न होवे (क्यूंकि) मै संसाररूपी दुःख के समुन्दर में डूबा जा रहा हु । मुझ दिन हिन पर आप अपनी अमृतमय कृपा की वृष्टि कीजिये और कृपया मुझे दर्शन दीजिये ।।</div>
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<img src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiwZH62VhWpnEpqeq_ZkOJ8dOvpaySntV11VQRrUgfCBZdvXN4jSezYJeNzMZrxSgLsX-FvaSSecGp-VFJo-4WTYRcTBgHsNoOP0yTt3bE5cdlg9klgWVQSfSAlhyughIohFxlJYf5TDvI/s400/Screenshot-7.png"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiwZH62VhWpnEpqeq_ZkOJ8dOvpaySntV11VQRrUgfCBZdvXN4jSezYJeNzMZrxSgLsX-FvaSSecGp-VFJo-4WTYRcTBgHsNoOP0yTt3bE5cdlg9klgWVQSfSAlhyughIohFxlJYf5TDvI/s1600/Screenshot-7.png"></a></div>
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हे दामोदर (जिनके पेट से रस्सी बंधी हुयी है वो), आपने माता यशोदा द्वारा ओखल में बंधे होने के बाद भी कुबेर के पुत्रो (मणिग्रिव तथा नलकुबेर) जो नारदजी के श्राप के कारण वृक्ष के रूप में मूर्ति की तरह स्थित थे, उनका उद्धार किया और उनको भक्ति का वरदान दिया, आप उसी प्रकार से मुझे भी प्रेमभक्ति प्रदान कीजिये, यही मेरा एकमात्र आग्रह है, किसी और प्रकार की कोई भी मोक्ष के लिए मेरी कोई कामना नहीं है । </div>
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<img src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgx5T8PTbCXquUE1tIfOnh2LMq8AVK4OAa28KZHPRch0Kq6igphWcrj8ltv23YGiYvIDBIt_4JMwr8DhzgvaksDIM_aOm1HW2-Bb1uKLnHyb8DUT1g9iQ8WjdhgKcu3iUAl889FI8L53hI/s400/Screenshot-6.png"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgx5T8PTbCXquUE1tIfOnh2LMq8AVK4OAa28KZHPRch0Kq6igphWcrj8ltv23YGiYvIDBIt_4JMwr8DhzgvaksDIM_aOm1HW2-Bb1uKLnHyb8DUT1g9iQ8WjdhgKcu3iUAl889FI8L53hI/s1600/Screenshot-6.png"></a></div>
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हे दामोदर, आपके उदर से बंधी हुयी महान रज्जू (रस्सी) को प्रणाम है, और आपके उदर, जो निखिल ब्रह्म तेज का आश्रय है, और जो सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का धाम है, को भी प्रणाम है । श्रीमती राधिका जो आपको अत्यंत प्रिय है उन्हें भी प्रणाम है, और हे अनंत लीलाऐ करने वाले भगवन, आपको प्रणाम है । </div>
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|| जय श्री राधा दामोदर || </div>
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Shobha Sinhahttp://www.blogger.com/profile/01970011971472839425noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2557317395017594877.post-83957931589897899432017-10-27T12:47:00.001+05:302017-10-27T13:52:30.835+05:30Tulsi Devi Ko Namaskar ( तुलसी देवी को नमस्कार ।)<div><br></div><div><br></div><div><div class="separator" style="clear: both;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEik_ETT2e1IJUDlFjUYM_SoRu4IJPKlyBmY1YQAw2kpS7XcaOj8JHYWBlPHgt2cRs7SFbLaqQlyJy2zQQon4ZA2XMVcvm2wbat1DBRp_Vm156YaGYrKXMPbJFc2YDf4OF90fGx6Nlw3zEk/s640/blogger-image--196848305.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEik_ETT2e1IJUDlFjUYM_SoRu4IJPKlyBmY1YQAw2kpS7XcaOj8JHYWBlPHgt2cRs7SFbLaqQlyJy2zQQon4ZA2XMVcvm2wbat1DBRp_Vm156YaGYrKXMPbJFc2YDf4OF90fGx6Nlw3zEk/s640/blogger-image--196848305.jpg"></a></div><div class="separator" style="clear: both;"><br></div>या दृष्टा निखिलाघसंघशमनी स्पृष्टा वपुष्पावनी<div> रोगाणामभिवन्दिता निरसनी सिक्तान्तकत्रासिनी ।</div><div>प्रत्यासत्तिविधायिनी भगवत: कृष्णस्य संरोपिता</div><div> न्यस्ता तच्चरणे विमुक्तिफलदा तस्यै तुलस्यै नम: ।।</div><div><br></div><div>जो दर्शन पथ में आने पर सारे पाप-समुदाय का नाश कर देती है, स्पर्श किये जाने परशरीर को पवित्रबनाती है, प्रणाम किये जाने पर रोगों का निवारण करती है, जल से सींचे जाने पर यमराज को भी भय पहुँचाती है, आरोपित किये जाने पर भगवान् श्रीकृष्ण के समीप ले जाती है और भगवान् के चरणों में चढ़ाये जाने पर मोक्षरूपी फल प्रदान करती है, उस तुलसीदेवी को नमस्कार है। ( ( (पद्मपुराण )</div></div>Shobha Sinhahttp://www.blogger.com/profile/01970011971472839425noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2557317395017594877.post-19136264519432367542017-10-07T15:54:00.001+05:302017-10-07T16:05:41.178+05:30Bhajman Ram charan sukhdaiभजमन राम चरण सुखदायी,भजमन राम चरण सुखदायी।<div><br></div><div>जेहि चरणन से निकसि सुरसरि,शंकर जटा समायी</div><div>जटा शंकरी नाम परयो है , त्रिभुवन तारण आयी ।</div><div>भजमन राम चरण सुखदायी ।</div><div><br></div><div>जेहि चरणन की चरण पादुका , भरत लियो लव लाई</div><div>सोई चरण केवट धोय लीने , तब हरि नाव चढ़ाई ।</div><div>भजमन राम चरण सुखदायी।</div><div><br></div><div>जेहि चरणन संतन जन सेवत, सदा रहत सुखदायी</div><div>सोई चरण गौतम ऋषि नारी, परसि परम पद पाई।</div><div>भजमन राम चरण सुखदायी।</div><div><br></div><div>दंडक वन प्रभु पावन कीन्हें, ऋषियन त्रास मिटाई</div><div>सोई प्रभु त्रिलोक के स्वामी, कनक मृगा संग धाई।</div><div>भजमन राम चरण सुखदायी।</div><div><br></div><div>शिवसनकादिक अरु ब्रह्मादिक, शेष सहस मुख गाई</div><div>तुलसीदास मरूत सुत की प्रभु , निज मुख करत बड़ाई।</div><div>भजमन राम चरण सुखदायी,भजमन राम चरण सुखदायी।</div><div><br></div><div><br></div>Shobha Sinhahttp://www.blogger.com/profile/01970011971472839425noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2557317395017594877.post-40088248289527926592017-05-24T15:47:00.001+05:302017-06-22T11:36:26.468+05:30दुर्गा सप्तशती के सिद्ध मन्त्र ( संस्कृत में ।)<p dir="ltr"> </p><div class="separator" style="clear: both;"><div class="separator" style="clear: both;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhZdo17ZBGR6NhTlSwAkOwQPkoT8M7naQtg3lBrsi2A7MLWn4u_tK-WguViPRbmA48sOaMdg2G_ISjCFEwTPiSTZOaj2SN9qjBvu3KdEcCrYElst1wtCSxFPt-VDdIs_hAXVPMk7GbwHRI/s640/blogger-image-93901435.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhZdo17ZBGR6NhTlSwAkOwQPkoT8M7naQtg3lBrsi2A7MLWn4u_tK-WguViPRbmA48sOaMdg2G_ISjCFEwTPiSTZOaj2SN9qjBvu3KdEcCrYElst1wtCSxFPt-VDdIs_hAXVPMk7GbwHRI/s640/blogger-image-93901435.jpg"></a></div><br></div><br>१- या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता ।<br> नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।( शक्ति दायी मंत्र )<p></p>
<p dir="ltr">२- शरणागत दीनार्थ परित्राण परायणे।<br> सर्वस्यार्ति हरे देवी नारायणी नमोस्तुते।। ( आपत्ति उद्धारक मंत्र )</p>
<p dir="ltr"> ३- सर्व स्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्ति समन्विते ।<br> भयेभ्यःस्त्राहि नो देवि दुर्र्गे देवि नमोस्तुते ।। ( भय विनाशक मंत्र )</p><p dir="ltr"> ४- करोतु सा न: शुभहेतुरीश्वरी ।</p><p dir="ltr"><span style="font-family: 'Helvetica Neue Light', HelveticaNeue-Light, helvetica, arial, sans-serif;">शुभानि भद्राण्यभिहृन्तु चापद: ।। ( विपत्तिनाशक तथा शुभदायक मंत्र )</span></p><p dir="ltr">५- ओम् जयन्ती मंगलाकाली भद्रकाली कपालिनी।</p><p dir="ltr"><span style="font-family: 'Helvetica Neue Light', HelveticaNeue-Light, helvetica, arial, sans-serif;">दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोस्तुते ।। ( महामारी नाशक मंत्र )</span></p><p dir="ltr"> ६- देहि सौभाग्यमारोग्यम् देहि में परमं सुखम् ।</p><p dir="ltr"> रूपम् देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जाहि ।।( सौभाग्य तथा आरोग्य कारक मंत्र। ) </p><p dir="ltr">७- पत्नीं मनोरमां देहि मनोवृतानुसारिणीम् ।</p><p dir="ltr">तारिणीम दुर्ग संसार-सागरस्य कुलोद्भवाम् ।। ( सुलक्षणा पत्नी प्राप्ति के लिये )</p><p dir="ltr"> ८- ओम् कात्यायनि महामाये, महायोगिन्यधीश्वरी। </p><p dir="ltr">नन्दगोप सुते देवि पतिं में कुरू ते नम: ।। ( इच्छित पति प्राप्ति के लिये )</p><p dir="ltr"> ९ - सृष्टि - स्थिति विनाशानो शक्ति भूते सनातनी ।</p><p dir="ltr"> गुणाश्रये-गुणमये नारायणि नमोस्तुते ।। ( शक्ति प्राप्ति के लिये )</p><p dir="ltr">१०- देवकीसुत गोविन्द: वासुदेव जगत्पते ।</p><p dir="ltr">देहि में तनयं कृष्ण: त्वामहं शरणं गत: ।। ( पुत्र प्राप्ति के लिये )</p><p dir="ltr"><br></p><p dir="ltr"><br></p><p dir="ltr"><br><br><br><br></p>
Shobha Sinhahttp://www.blogger.com/profile/01970011971472839425noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2557317395017594877.post-18771727157930050622017-04-13T10:49:00.001+05:302017-04-13T22:23:02.389+05:30Ma Durga Ke Pratham Swaroop 'Shailputri Mata ' Ki Puja<div class="separator" style="clear: both;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiWoJF_hNCqqBopFzqTQYkmAx04b_i5KpNl602reufNHnyKVTh5_coozbgxJh2hLwlPtFybeF6KfgGibcUpwZsxqMoa7h5mehLwx_-EHFh4rwPxX4VxHvVzB2lE8KKA0koqRLNZ9j3UtzY/s640/blogger-image-1861615706.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiWoJF_hNCqqBopFzqTQYkmAx04b_i5KpNl602reufNHnyKVTh5_coozbgxJh2hLwlPtFybeF6KfgGibcUpwZsxqMoa7h5mehLwx_-EHFh4rwPxX4VxHvVzB2lE8KKA0koqRLNZ9j3UtzY/s640/blogger-image-1861615706.jpg"></a></div>नवरात्र के प्रथम दिन घट स्थापन के बाद माँ दुर्गा के प्रथम स्वरूप 'माता शैलपुत्री' की पूजा करने का विधान है।शैल का अर्थ है हिमालय और हिमालय के यहाँ जन्म लेने के कारन इन्हें शैलपुत्री कहा जाता है।पार्वती के रूप में इन्हें भगवान शंकर की पत्नी के रूप में भी जाना जाता है।इनका वाहन वृषभ ( बैल ) होने के कारण इन्हें वृषभारूढ़ा के नाम से भी जाना जाता है।इनके दाएँ हाथ में त्रिशूल है और बाएँ हाथ में इन्होंने कमल धारण किया हुआ है।<div> शास्त्रों में इनसे जुड़ी एक कहानी का उल्लेख है कि प्राचीन काल में जब सतीजी के पिता प्रजापति दक्ष यज्ञ कर रहे थे तो इन्होंने सभी देवताओं को इस यज्ञ में सम्मिलित होने के लिये आमंत्रित किया लेकिन अपने जमाता, भगवान भोले शंकर और अपनी पुत्री सती को निमन्त्रण नहीं भेजा।सतीजी को अपने पिता के यज्ञ में जाने की तीब्र इच्छा थी।उनकी व्यग्रता देखकर महादेव ने कहा, सम्भवत: प्रजापति दक्ष हमसे रूष्ट हैं, इसलिये उन्होंने हमें आमंत्रित नहीं किया होगा।शंकरजी के इस वचन से सतीजी सन्तुष्ट नहीं हुई,और जाने की जिद करने लगीं।उनकी वेचैनी देखकर महादेव ने उन्हें जाने की अनुमति दे दिया।</div><div> सतीजी जब अपने पिता के घर पहुँची तो सिर्फ माँ ने ही उन्हें स्नेह दिया तथा पुत्री को देखकर प्रसन्न हुई।घर के अन्य सदस्य ने ना तो ठीक से उनसे बातचीत किया और ना ही उनका हाल समाचार पूछा,बल्कि महादेव के उपर व्यंगात्मक छीटाकशी भी की।पिता दक्ष ने भी महादेव के प्रति व्यंगात्मक कुछ बाते कहीं जो सतीजी को उचित नहीं लगा । अपने पति का तिरस्कार होता देख उन्होंने योगाग्नि से अपने आप को भस्म कर लिया।जब भगवान शंकर को सती के भस्म होने के विषय में पता चला तो वे अत्यधिक क्रोधित हो गये और उन्होंने दक्ष के यज्ञ का विध्वंस करवा दिया।यही सतीजी अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्मीं और शैलपुत्री कहलाई।शैलपुत्री का विवाह भगवान शंकर से हुआऔर वो भगवान शंकर की पत्नी बन गईं।ऐसा कहा जाता है कि माँ दुर्गा के इस शैलपुत्री स्वरूप का पूजन करने से उपासक की सभी मनोकामनाएँ पूरी होती है और कन्याओं को मनोवांछित वर की प्राप्ति होती है।इनकी पूजा में लाल फूल,सिन्दूर नारियल और घी के दीपक का प्योग होता है।माँ शैलपुत्री का पूजन और स्तवन निम्न मंत्र से किया जाता है।</div><div><br></div><div> ' वन्दे वांछितलाभाय , चन्द्रार्धकृतशेखराम् ।</div><div> वृषारूढ़ां शूलधरां, शैलपुत्रीं यशस्विनीम् ।।'</div><div> अर्थात् मैं मनोवांछित लाभ के लिये अपने मस्तक पर अर्धचन्द्र धारण करने वाली , वृष पर सवार रहने वाली , शूलधारिणी और यशस्विनी माँ शैलपुत्री की वंदना करता हूँ।</div>Shobha Sinhahttp://www.blogger.com/profile/01970011971472839425noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2557317395017594877.post-34085719563281398532017-04-11T23:35:00.001+05:302017-04-11T23:42:26.134+05:30Mai Ram Nam Gun Gaun मैं राम नाम गुण गाऊँ<div class="separator" style="clear: both;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjuy1a04XBlAc5TV9qPYyrEowwk1dbjWi-7VYa9EawrbCDskg0v9jAPJww1A_p9Cu7oWvPy7zcKx7bKGKASXWSD-eoLwuNo96ovNhkvnLSBn35d2vmoZ2TDFOfRWa5eJ4SdbsUCowiljjg/s640/blogger-image--1228733017.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjuy1a04XBlAc5TV9qPYyrEowwk1dbjWi-7VYa9EawrbCDskg0v9jAPJww1A_p9Cu7oWvPy7zcKx7bKGKASXWSD-eoLwuNo96ovNhkvnLSBn35d2vmoZ2TDFOfRWa5eJ4SdbsUCowiljjg/s640/blogger-image--1228733017.jpg"></a></div>मैं राम नाम गुण गाऊँ ,भगवन राम नाम गुण गाऊँ ।<div>तेरा सहारा लेकर भगवन भवसागर तर जाऊँ ।।</div><div><br></div><div>विपदा के मारों का तू है , जनम - जनम का साथी ,</div><div>तेरे ही नाम से रौशन दुनिया की अँधियारी वाती ।</div><div>मन मन्दिर में निशदिन भगवन प्रेम की जोत जलाऊँ ।</div><div>मैं राम नाम गुण गाऊँ------------ ।</div><div><br></div><div>कहते हैं कण - कण में प्रभुजी तेरा रूप समाया ,</div><div>फिर भी मैं भगवन देख न पाऊँ , क्या ये तेरी माया ।</div><div>मुझको दान करो वह अँखियाँ , जिनसे मैं दर्शन पाऊँ </div><div>मैं राम नाम गुण गाऊँ ------------।</div>Shobha Sinhahttp://www.blogger.com/profile/01970011971472839425noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2557317395017594877.post-21625094402508608872017-04-02T22:13:00.001+05:302017-06-18T19:17:17.601+05:30माँ दुर्गा का सातवां रूप ' माँ कालरात्रि'<div class="separator" style="clear: both;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEik8e5pWpia3zbW2YuZwYWkWJ2AULTwGnwhVc2YhMuEQxqdcWC4sM2pGBTyKQ7GvBPnEsqbEBwbJV-bdE4QmSs5pJumcTYXR6POyveVvGnhUauPNz5xpTPTXPI0rP_ZfWKLby-G5MfnzOI/s640/blogger-image-1156088505.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEik8e5pWpia3zbW2YuZwYWkWJ2AULTwGnwhVc2YhMuEQxqdcWC4sM2pGBTyKQ7GvBPnEsqbEBwbJV-bdE4QmSs5pJumcTYXR6POyveVvGnhUauPNz5xpTPTXPI0rP_ZfWKLby-G5MfnzOI/s640/blogger-image-1156088505.jpg"></a></div>नवरात्र के सातवें दिन दुर्गाजी के सातवें स्वरूप माँ कालरात्रि की पूजा होती है।इनका वर्ण अंधकार रात्रि की तरह काला है ।बाल बिखरे हुये हैं और गले में माला बिजली की तरह देदीप्यमान है।इन्हें तमाम आसुरि शक्तियों का विनाश करने वाला बताया गया है।इनके तीन नेत्र और चार हाथ हैं ।इनके एक हाथ में खड़ग है तो दूसरे हाथ में लौह अस्त्र है, तीसरे हाथ मेंअभयमुद्रा है और चौथे हाथ में वरमुद्रा है।इनका वाहन गर्दभ अर्थात गधा है।कालरात्रि नाम के अनुरूप ,एैसी मान्यता है कि माँ अपने भक्तों की रक्षा काल से भी करती हैं अर्थात उनकी अकाल मृत्यु नहीं होती।इन्हें सभी सिद्धियों की देवी भी कहा जाता है।इसलिये तंत्र-मंत्र की उपासना करने वाले इसदिन इनकी विशेष रूप से पूजा करते हैं।इनके नाम के उच्चारण मात्र से ही सभी भूत,प्रेत,राक्षस,दानव और सभी पैशाचिक शक्तियाँ भाग जाती हैं।इनकी पूजा में गुड़ के भोग का विशेष महत्व है।माँ कालरात्रि की पूजा,अर्चना निम्न मंत्र से किया जाता है------ <div><br></div><div> एकवेणी जपाकर्ण, पूरा नग्ना खरास्थिता ।</div><div> लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी, तैलाभ्यक्तशरीरिणी।।</div><div> वामपादोल्लसल्लोह, लताकंटकभूषणा ।</div><div> वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा , कालरात्रिभयंकरी ।।</div><div><br></div><div> अर्थात एक वेणी ( बालों की चोटी ) वाली, जपाकुसुम ( अड़हुल ) के फूल की तरह लाल कर्ण वाली, उपासक की कामनाओं को पूर्ण करने वाली,गर्दभ पर सवारी करने वाली,लंबे होठों वाली, कर्णिका के फूलों की भांति कानों से युक्त,तैलीय त्वचा वाली, अपने बांये पैर में चमकने वाली लौह लता धारण करने वाली,कांटों की तरह आभूषण पहनने वाली, बड़े ध्वज वाली और भयंकर लगने वाली कालरात्रि माँ हमारी रक्षा करें।<br></div>Shobha Sinhahttp://www.blogger.com/profile/01970011971472839425noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2557317395017594877.post-6190213407300062772017-04-01T17:44:00.001+05:302017-04-12T17:08:38.942+05:30Ma Durga ka Chhatha Roop 'Ma Katyayani'माँ दुर्गा का छठा रूप ' माँ कात्यायनी'<div class="separator" style="clear: both;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEipN8jsP__PuSWG50b2bwisYOhZedzg5vSd9Hf4w8kzQrhabZL0bV9e3_dBSdDte1HFlQEzlaYmqpSsrRirnYUmq1wurD9qpwxaEPjWZOxQi2TBqF4LlYDv3Q9uboDA3I2NqZ5eKkE9xjY/s640/blogger-image--1893842152.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEipN8jsP__PuSWG50b2bwisYOhZedzg5vSd9Hf4w8kzQrhabZL0bV9e3_dBSdDte1HFlQEzlaYmqpSsrRirnYUmq1wurD9qpwxaEPjWZOxQi2TBqF4LlYDv3Q9uboDA3I2NqZ5eKkE9xjY/s640/blogger-image--1893842152.jpg"></a></div>नवरात्र के छठे दिन दुर्गाजी के छठे स्वरूप माँ कात्यायनी की पूजा और अर्चना की जाती है।ऐसा विश्वास है कि इनकी उपासना करने से अर्थ , धर्म , काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है।माँ ने कात्य गोत्र के महर्षि कात्यायन के यहाँ पुत्री रूप में जन्म लिया,इसलिए इनका नाम कात्यायनी पड़ा।इनका रंग स्वर्ण की भांति अत्यन्त चमकीला है और इनकी चार भुजायें हैं।<div> <span style="font-family: 'Helvetica Neue Light', HelveticaNeue-Light, helvetica, arial, sans-serif;">इनकी दाईं ओर के ऊपर वाला हाथ अभय मुद्रा में है और नीचे वाला हाथ वर मुद्रा में।बाईं ओर के ऊपर वाले हाथ में खड़ग अर्थात तलवार है और नीचे वाले हाथ में कमल का फूल है।इनका वाहन भी सिंह है।</span></div><div><span style="font-family: 'Helvetica Neue Light', HelveticaNeue-Light, helvetica, arial, sans-serif;"> शास्त्रों में ऐसा उल्लेख मिलता है कि महर्षि कात्यायन ने सर्वगुण संपन्न पुत्री पाने के उद्देश्य से भगवती पराम्बा की कठिन तपस्या की और इन्हें पुत्री के रूप में कात्यायनी की प्राप्ति हुई।क्योंकि ये ब्रजभूमि की अधिष्ठात्री देवी के रूप में प्रतिष्ठित हैं, संभवत: इसलिए ब्रज प्रदेश की गोपियों ने भगवान कृष्ण को पति रूप में पाने के लिये यमुना तट पर इन्हीं माँ कात्यायनी की पूजा की थी।</span></div><div><span style="font-family: 'Helvetica Neue Light', HelveticaNeue-Light, helvetica, arial, sans-serif;"> इनके पूजन में शहद का विशेष महत्व बताया गया है।इसलिय इन्हें मधु का भोग लगाया जाता है।इनके उपासक को किसी प्रकार का कोई भय नहीं रहता है और वह सब तरह के पापों से मुक्त हो जाता है।इन्हें शोध की देवी कहा जाता है।उच्च शिक्षा प्राप्त करने वालों को इनकी पूजा अवश्य करनी चाहिये।इनकी पूजा अर्चना तथा स्तवन निम्न मन्त्र से किया जाता है।</span></div><div><span style="font-family: 'Helvetica Neue Light', HelveticaNeue-Light, helvetica, arial, sans-serif;"><br></span></div><div><span style="font-family: 'Helvetica Neue Light', HelveticaNeue-Light, helvetica, arial, sans-serif;"> चन्द्रहासोज्जवलकरा , शार्दूलवरवाहना ।</span></div><div><span style="font-family: 'Helvetica Neue Light', HelveticaNeue-Light, helvetica, arial, sans-serif;"> कात्यायनी शुभं दद्यात् , देवी दानवघातनी।।</span></div><div><span style="font-family: 'Helvetica Neue Light', HelveticaNeue-Light, helvetica, arial, sans-serif;">अर्थात् चन्द्रहास की भाँति देदीप्यमान , शार्दूल अर्थात शेर पर सवार और दानवों का विनाश करने वाली माँ कात्यायनी हम सबके लिये शुभदायी हों।</span></div><div><span style="font-family: 'Helvetica Neue Light', HelveticaNeue-Light, helvetica, arial, sans-serif;"> </span></div>Shobha Sinhahttp://www.blogger.com/profile/01970011971472839425noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2557317395017594877.post-53264002038303007112017-03-31T13:22:00.001+05:302017-04-12T17:15:09.678+05:30'SkandMata'Ma Durga Ka Pancham Roop<div class="separator" style="clear: both;"><div class="separator" style="clear: both;"><div class="separator" style="clear: both;"><div class="separator" style="clear: both;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEijr7a37MX5o75bBg5B3Lh3XVxnkMH1Kvlu-6Nx77X6rJcBXJAtUl-u3G_CZcaf0LMF9mgaj7PbNwWf54iaAXMwkbeDROhhKju_e7LCrkMfh5mYPt0B5eWm7ri_jdTBPCBnZGES1jEjZkU/s640/blogger-image-420362332.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEijr7a37MX5o75bBg5B3Lh3XVxnkMH1Kvlu-6Nx77X6rJcBXJAtUl-u3G_CZcaf0LMF9mgaj7PbNwWf54iaAXMwkbeDROhhKju_e7LCrkMfh5mYPt0B5eWm7ri_jdTBPCBnZGES1jEjZkU/s640/blogger-image-420362332.jpg"></a></div><br></div><br></div><div class="separator" style="clear: both;"><span style="font-family: 'Helvetica Neue Light', HelveticaNeue-Light, helvetica, arial, sans-serif;">नवरात्र के पाँचवे दिन दुर्गाजी के पाँचवे स्वरूप माँ स्कंदमाता की पूजा-अर्चना की जाती है।स्कंद शिव और पार्वती के पुत्र कार्तिकेय (षडानन,अर्थात छह मुख वाले) का एक नाम है।स्कंद की माँ होने के कारण ही इनका नाम स्कंदमाता पड़ा।</span></div></div><div><br></div><div> माना जाता है कि माँ दुर्गा का यह रूप अपने भक्तों की सभी मनोकामनाओं की पूर्ति करता है और उन्हें मोक्ष का मार्ग दिखाता है।माँ के इस रूप की चार भुजायें हैं।इन्होंने अपनी दाएँ तरफ की ऊपर वाली भुजा से स्कंद अर्थात् कार्तिकेयजी को पकड़ा हुआ है।इसी तरफ वाली निचली भुजा में कमल का पुष्प है।बाई ओर की ऊपर वाली भुजा में वरमुद्रा है और नीचे दूसरे हाथ में श्वेत कमल का फूल है।सिंह इनका वाहन है।यह सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी हैं।इसलिये इनके चारो ओर सूर्य सदृश अलौकिक तेजोमय मंडल सा दिखाई देता है।इन्हें कमल के आसन पर स्थित होने के कारण पद्मासना भी कहा जाता है।इनकी पूजा करने से भगवान कार्तिकेय, जो इनके पुत्र रूप मे इनकी गोद में विराजमान हैं, की भी पूजा स्वभाविक रूप से हो जाती है।मन की एकाग्रता के लिये भी देवी की कृपा विशेष रूप से फलदायी है।इनकी अराधना निम्न मंत्र से करनी चाहिये।</div><div><br></div><div> सिंहासनगता नित्यं,</div><div> पद्माश्रितकरद्वया। </div><div> शुभदास्तु सदा देवी ,</div><div> स्कंदमाता यशस्विनी ।।</div><div><br></div><div> अर्थात सिंह पर सवार रहने वाली और अपने दो हाथों में कमल का फूल धारण करने वाली यशस्विनी स्कंदमाता हमारे लिये शुभदायी हों।</div>Shobha Sinhahttp://www.blogger.com/profile/01970011971472839425noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2557317395017594877.post-31112359002390965612017-03-26T12:24:00.001+05:302017-08-15T18:03:18.762+05:30Vaishno Mata Ki Aarti<div><div class="separator" style="clear: both;"><div class="separator" style="clear: both;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhCjWO1_pjCtY8ex00B4dgTX96BnICmJG55r2o9yLljpRcK-fslFz89KXbE2h9bOp2VC9FAEe2P7_3itaQPSdqTCo-AqFKufqSGX5ipMi_hnB3HA-zzqxy7sIl5wNOYArS0WbmTUqnsDcg/s640/blogger-image--1152955836.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><br></a> </div><div class="separator" style="clear: both;"> <div class="separator" style="clear: both;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh-KTMSEZaPtg9Y-tPBoux7Vtd7KIsyULe3pqecn6qtMnISdgy2nHrL8PE24YY8Uq1x28Z-3FDlwOPWyT1crAg2BF_PK78J3esixycxuNwN5Gqf28MkzEzmKOE8wFoOBfJLEws9ZS5dXbc/s640/blogger-image-563890672.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh-KTMSEZaPtg9Y-tPBoux7Vtd7KIsyULe3pqecn6qtMnISdgy2nHrL8PE24YY8Uq1x28Z-3FDlwOPWyT1crAg2BF_PK78J3esixycxuNwN5Gqf28MkzEzmKOE8wFoOBfJLEws9ZS5dXbc/s640/blogger-image-563890672.jpg"></a></div></div><div class="separator" style="clear: both;"> </div></div></div><div> </div>भोर भई दिन चढ़ गया मेरी अम्बे , हो रही जय-जयकार <div>मंदिर बिच आरती जय माँ, हे दरबारावाली आरती जय माँ ।</div><div><br></div><div>काहे की मैया तेरी आरती बनावाँ ,काहे दीपावाँ बीच बाती </div><div>मंदिर बिच आरती जय माँ , सुहे चोलियाँवाली आरती जय माँ।</div><div><br></div><div>सर्व सोने दी तेरी आरती बनावाँ , अगर कपूर पावाँ बाती </div><div>मंदिर बिच आरती जय माँ,जय माँ पिण्डीवाली आरती जय माँ।</div><div><br></div><div>कौन सुहागन दीवा वालिया मेरी मैया , कौन जागेगा सारी रात </div><div>मंदिर बिच आरती जय माँ , सच्चियाँ जोतावाली आरती जय माँ।</div><div><br></div><div>सर्वसुहागन दीवा वालिया मेरी मैया, ज्योत जागेगी सारी रात</div><div>मंदिर बिच आरती जय माँ, जय माँ पहाड़ावाली आरती जय माँ ।</div><div><br></div><div>जुग-जुग जीवे तेरा जम्मुए द राजा , जिस तेरा भवन बनाया </div><div>मंदिर बिच आरती जय माँ, जय माँ भवनावाली आरती जय माँ।</div><div><br></div><div>सिमर चरण तेरा ध्यानु यश गावे, चरणा ते जावाँ बलिहार </div><div>मंदिर बिच आरती जय माँ ,जय माँ जोतावाली आरती जय माँ।</div><div><br></div><div><br></div>Shobha Sinhahttp://www.blogger.com/profile/01970011971472839425noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2557317395017594877.post-67294771707665457782017-03-24T16:29:00.001+05:302017-03-25T12:23:55.255+05:30Aisa Pyar Baha De Maiya <a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj0pQQmqsMXpm6HkaKi1REpTcvjmst3XSjvTVqfjAhq_4zaFgwlfBX9z91NeLfAqBI_Gbv5Ga-GfcyujoJOiwa6F8S5lh17cDY4t2CYLO55vu_MhaP3FL_4Wx2o2AwiKvQXROV-rHEqDp4/s640/blogger-image-1832374992.jpg" imageanchor="1" style="font-family: 'Helvetica Neue Light', HelveticaNeue-Light, helvetica, arial, sans-serif; margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj0pQQmqsMXpm6HkaKi1REpTcvjmst3XSjvTVqfjAhq_4zaFgwlfBX9z91NeLfAqBI_Gbv5Ga-GfcyujoJOiwa6F8S5lh17cDY4t2CYLO55vu_MhaP3FL_4Wx2o2AwiKvQXROV-rHEqDp4/s640/blogger-image-1832374992.jpg"></a><div> या देवी सर्वभूतेषू दया रूपेण संस्थिता ,<div>नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम: ।</div><div> दुर्गा दुर्गति दूर कर , मंगल कर सब काज ।</div><div> मन मंदिर उज्जवल करो , कृपा कर के आज ।।</div><div><br></div><div>ऐसा प्यार बहा दे मैया , चरणों से लग जाऊँ मैं ।</div><div>सब अंधकार मिटा दे मैया , दर्श तेरा कर पाऊँ मैं ।ऐसा प्यार.....</div><div><br></div><div>जग में आकर जग को मैया , अब तक न पहचान सका ।</div><div>क्यों आया हूँ कहाँ है जाना , ये भी न मैं जान सका ।</div><div>तू है अगम अगोचर मैया , कहो कैसे लख पाऊँ मैं । ऐसा प्यार.....</div><div><br></div><div>कर कृपा जगदम्ब भवानी , मैं बालक नादान हूँ </div><div>नहीं अराधन जप तप जानूँ , मैं अवगुण की खान हूँ ।</div><div>दे ऐसा बरदान हे मैया , सुमिरन तेरा गाऊँ मैं। ऐसा प्यार.....</div><div><br></div><div>मैं बालक तू मैया मेरी , निशदिन तेरी ओट है ।</div><div>तेरी कृपा ही में मेरी , भीतर जो भी खोट है ।</div><div>शरण लगा लो मुझको मैया , तुझपे बलि-बलि जाऊँ मैं ।ऐसा प्यार ...</div><div><br></div><div><br></div><div><br></div><div><br></div></div>Shobha Sinhahttp://www.blogger.com/profile/01970011971472839425noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2557317395017594877.post-77941272740118722872017-03-19T23:01:00.001+05:302017-03-20T15:36:26.496+05:30Ambike Jagdambike Ab Tera Hi Aadhar Hai<div><br></div><div><br></div><div class="separator" style="clear: both;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjsXazAl5dxuDERpXrx2UCXPjLouVOIQakJhQGdJW7dnLCJ8m9G4hf46O5tBJw2u2klI925_DJBM_-gKxStQNcZ1S_bHvYL44kg6TXXG5FPPXqVLmZK6zbWb8YYHAizzi5TuvfZslSW3Yw/s640/blogger-image--1403926896.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjsXazAl5dxuDERpXrx2UCXPjLouVOIQakJhQGdJW7dnLCJ8m9G4hf46O5tBJw2u2klI925_DJBM_-gKxStQNcZ1S_bHvYL44kg6TXXG5FPPXqVLmZK6zbWb8YYHAizzi5TuvfZslSW3Yw/s640/blogger-image--1403926896.jpg"></a></div><div class="separator" style="clear: both;"><span style="font-family: 'Helvetica Neue Light', HelveticaNeue-Light, helvetica, arial, sans-serif;"><br></span></div><div class="separator" style="clear: both;"><span style="font-family: 'Helvetica Neue Light', HelveticaNeue-Light, helvetica, arial, sans-serif;">अंबिके जगदम्बिके अब तेरा ही आधार है ,</span></div><div> <span style="font-family: 'Helvetica Neue Light', HelveticaNeue-Light, helvetica, arial, sans-serif;">जिसने ध्याया तुझको मैया , उसका बेड़ा पार है।</span></div><div> नंगे पग तेरे दर पे मईया अकबर आया,</div><div> सोने का छत्र माँ उसने चढ़ाया ।</div><div> पूजा किया माँ उसने तेरी ,तू शक्ति का अवतार है,</div><div> जिसने ध्याया तुझको मैया , उसका बेड़ा पार है ।अंबिके..........</div><div><br></div><div>पान सुपारी ध्वजा नारियल लेकर भेंट चढ़ाऊँ ,</div><div>हाथ जोड़कर विनती करूँ माँ , तुझको ही मनाऊँ ।</div><div> दर पे आये भक्तों ने बोली जय-जयकार है , </div><div>जिसने ध्याया तुझको मैया उसका बेड़ा पार है।अंबिके.............</div><div><br></div><div> दर पे खड़े सवाली भर दे ,मेरी झोली खाली ,</div><div> तेरा वचन न जाये खाली , जय हो मैया शेरां वाली ,</div><div> कर दे कृपा मेहरां वाली , माता तू बड़ी दयाल है, </div><div> जिसने ध्याया तुझको मैया , उसका बेड़ा पार है ।अंबिके..........</div><div><br></div><div> धर्म भवन जागरण में मैया , तुमको आना है,</div><div> सब भक्तों ने मईया तेरा दर्शन पाना है ।</div><div> जल्दी से अब आजा मईया , तेरा इन्तजार है , </div><div> जिसने ध्याया तुझको मैया , उसका बेड़ा पार है ।अंबिके..................</div>Shobha Sinhahttp://www.blogger.com/profile/01970011971472839425noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2557317395017594877.post-87365585694727058202017-03-07T17:11:00.001+05:302017-03-14T00:31:28.901+05:30संत कृपा से भव पार।<div><br></div><div><br></div><div><br></div><div><div class="separator" style="clear: both;"> </div></div><div class="separator" style="clear: both;"><br></div><div class="separator" style="clear: both;"><div class="separator" style="clear: both;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh_I0qu-FU6xHcLFEiWSpd8obuERiz1VHyupse6jR83ZBzPIY-U49dfBvijQj0w8iC7UBsbucyv66KmjX1eWKPJ3aQzp3IIiDSDyWHPhRTUv7t2iBdz2MhS_6QxPwlsA87cv1Pe3_gbkxE/s640/blogger-image--1919603731.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh_I0qu-FU6xHcLFEiWSpd8obuERiz1VHyupse6jR83ZBzPIY-U49dfBvijQj0w8iC7UBsbucyv66KmjX1eWKPJ3aQzp3IIiDSDyWHPhRTUv7t2iBdz2MhS_6QxPwlsA87cv1Pe3_gbkxE/s640/blogger-image--1919603731.jpg"></a></div><br></div><div><span style="font-family: 'Helvetica Neue Light', HelveticaNeue-Light, helvetica, arial, sans-serif;"><br></span></div><div><span style="font-family: 'Helvetica Neue Light', HelveticaNeue-Light, helvetica, arial, sans-serif;"><br></span></div><div><span style="font-family: 'Helvetica Neue Light', HelveticaNeue-Light, helvetica, arial, sans-serif;">समर्थ गुरु रामदास बाबा एक सच्चे संत तथा हनुमानजी के भक्त भी थे।इनके बारे में कहा जाता है कि बाबाजी को हनुमानजी के दर्शन हुआ करते थे।एक बार बाबाजी ने हनुमानजी से कहा महाराज! आप एकदिन सब लोगों को दर्शन दें ।हनुमानजी ने कहा कि ' तुम लोगों को इकट्ठा करो तथा शुद्ध हरिकथा करना , मैं वहीं सभी लोगों को मैं दर्शन दे दूँगा।' बाबाजी बोले ऐसा ही होगा।</span></div><div><br></div><div> संत तथा राजगुरू होने के कारण बाबाजी का ऐसा प्रभाव था कि जहाँ भी जाते , वहीं हजारों की संख्या मे लोग इकट्ठे हो जाते।बाबाजी ने कहा आज रात शहर के बाहर अमुक मैदान में हरिकथा होगी।यह समाचार सुनते ही हरिकथा की तैयारी जोर-शोर से शुरू हो गई।दरियाँ तथा प्रकाश की व्यवस्था की गई।सब गाने -बजाने बाले आकर बैठ गये।लोगों की भीड़ जमा हो गई।समय पर बाबाजी कीर्तन प्रारम्भ कर दिये।बीच-बीच में भगवान की कथा भी बाबाजी कर देते फिर कीर्तन करने लगते । ऐसा करते करते , कीर्तन में बाबाजी इस कदर मस्त हो गये कि हरिकथा करना ही भूल गये।लोगों को आशा थी कि बाबाजी अब कथा सुनायेंगे , पर वे तो कीर्तन करते चले गये।लोगों के भीतर असली भाव तो था नहीं , अत: उन्होंने सोंचा कि कीर्तन तो हम घर पर स्वयं कर लेंगे ,यहाँ कबतक बैठे रहें! ऐसा सोंचकर वे धीरे-धीरे उठकर जाने लगे।थोड़ी देर मे सभी लोग उठकर चले गये।धीरे-धीरे गाने बजाने वाले भी चले गये।बाबाजी अपनी आँखे बन्द कर कीर्तन करने मे मस्त थे।प्रकाश की ब्यवस्था करने वाले भी चले गये।अब दरीवालों को परेशानी थी, कि बाबाजी दरी पर ही मस्ती से नाच रहे हैं,उन्हें हटाकर दरी कैसे समेटे? फिर उन्होंने दिमाग लगाया,जब बाबाजी नाचते-नाचते दूसरी तरफ जाते तो दरीवाले इधर की तरफ का दरी समेट लेते और जब बाबाजी नाचते-नाचते इधर आते तो दरी उधर की समेट लेते।इस तरह दरीवाले भी दरियाँ लेकर चले गये।जब सभी चले गये,तब हनुमानजी प्रकट हो गये।</div><div><br></div><div>बाबाजी ने हनुमानजी से कहा कि महाराज ! आप सबको दर्शन दें।हनुमानजी ने कहा ,यहाँ है ही कौन ? यहाँ तो मुझे सिर्फ आपही दिख रहे हैं।बाबाजी उदास हो गये ।इस प्रकार भावपूर्ण भगवन्नाम का संकीर्तन करना ही शुद्ध हरिकथा है।और शुद्ध हरिकथा से भगवान् साक्षात प्रकट हो जाते हैं।यदि मन में भगवान् के प्रति सच्ची भावना होती तो बाबाजी की कृपा से सभी को हनुमानजी का साक्षात् दर्शन हो जाता ।</div><div><br></div><div> जय श्रीराम , जय हनुमान ।</div>Shobha Sinhahttp://www.blogger.com/profile/01970011971472839425noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2557317395017594877.post-32039179192789583032017-02-23T17:46:00.001+05:302017-03-02T13:09:41.230+05:30शिवताण्डव- स्तोत्रम्<div><br></div><div class="separator" style="clear: both;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjK0evxIJO-W3T61K-U9xUbZ8c7vmpYR4jqiDdSwJ29-JtapYfY5Dv7FhW6WKtIW9YADhmUuBiA3WQodMFwxQDCjmBrspFDNsOtwAFlJ_exBkY0iRyQPA4VYDmsvkGugT9r-CJhEMeGJzg/s640/blogger-image-2028128798.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjK0evxIJO-W3T61K-U9xUbZ8c7vmpYR4jqiDdSwJ29-JtapYfY5Dv7FhW6WKtIW9YADhmUuBiA3WQodMFwxQDCjmBrspFDNsOtwAFlJ_exBkY0iRyQPA4VYDmsvkGugT9r-CJhEMeGJzg/s640/blogger-image-2028128798.jpg"></a><span style="font-family: 'Helvetica Neue Light', HelveticaNeue-Light, helvetica, arial, sans-serif;">जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले</span></div><div> गलेवलम्ब्य लम्बितां भुजंगतुंगमालिकाम् ।</div><div>डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं</div><div> चकार चण्डताण्डवं तनोतु न: शिव: शिवम् ।।१ ।।</div><div><br></div><div>( जिन्होंने जटारूप अटवी ( वन ) से निकलती हुई गंगाजी के गिरते हुये प्रवाहों से पवित्र किये गये गले में शर्पों की लटकती हुई विशाल माला को धारणकर , डमरू के डम- डम शब्दों से मण्डित प्रचण्ड ताण्डव किया , वे शिवजी हमारे कल्याण का विस्तार करें। ) </div><div><br></div><div>जटाकटाहससम्भ्रमभ्रमन्निलिम्पनिर्झरी- </div><div> विलोलवीचिवल्लरीविराजमानमूर्द्धनि ।</div><div>धगद्धगद्धगज्ज्वलल्ललाटपट्टपावके</div><div> किशोरचन्द्रशेखरे रति: प्रतिक्षणं मम् ।।२ ।।</div><div><br></div><div>( जिनका मस्तक जटारूपी कड़ाह में वेग से घूमती हुई गंगा की चंचल तरंग , लताओं से सुशोभित हो रहा है , ललाटाग्नि धक् -धक् जल रही है , सिर पर बाल चन्द्रमा बिराजमान हैं , उन ( भगवान् शिव ) में मेरा निरन्तर अनुराग हो।)</div><div><br></div><div>धराधरेन्द्रनन्दिनीविलासबन्धुबन्धुर-</div><div> स्फुरद्धिगन्तसन्ततिप्रमोदमानमानसे ।</div><div>कृपाकटाक्षघोरणीनिरुद्धदुर्धरापदि</div><div> कचिद्यिगम्बरे मनो विनोद मेतु वस्तुनि ।।३ ।।</div><div><br></div><div>( गिरिराजकिशोरी पार्वती के विलासकालोपयोगी शिरोभूषण से समस्त दिशाओं को प्रकाशित होते देख जिनका मन आनन्दित हो रहा है , जिनकी निरन्तर कृपादृष्टि से कठिन आपत्ति का भी निवारण हो जाता है ऐसे किसी दिगम्बर तत्व में मेरा मन विनोद करे।) </div><div><br></div><div>जटाभुजंगपिंगलस्फुरत्फणामणिप्रभा-</div><div> कदम्बकुंकुमद्रवप्रलिप्तदिग्वधूमुखे ।</div><div>मदान्धसिन्धुरस्फुरत्वगुत्तरीयमेदुरे</div><div> मनो विनोदमद्भुतं विभर्तु भूतभर्तरि ।। ४ ।।</div><div><br></div><div>( जिनके जटाजूटवर्ती भुजंगमों के फणों की मणियों का फैलता हुआ पिंगल प्रभापुन्ज दिशारूपिणी अंगनाओं के मुख पर कुंकुम राग का अनुलेप कर रहा है , मतवाले हाथी के हिलते हुये चमड़े का उत्तरीय वस्त्र ( चादर ) धारण करने से स्निग्धवर्ण हुये उन भूतनाथ में मेरा चित्त अद्भुत विनोद करे ।</div><div><br></div><div>सहस्रलोचनप्रभृत्यशेषलेखशेखर-</div><div> प्रसूनधूलिघोरणीविधूसराड़्घ्रिपीठभू: ।</div><div>भुजंगराजमालया निबद्धजाट जूटक:</div><div> श्रियैचिराय जायतां चकोरबन्धुशेखर: ।।५ ।।</div><div><br></div><div>जिनकी चरणपादुकाएँ इन्द्र आदि समस्त देवताओं के ( प्रणाम करते समय ) मस्तकवर्ती कुसुमों की धूलि से धुसरित हो रही है , नागराज ( शेष नाग ) के हार से बँधी हुई जटावाले भगवान चन्द्रशेखर मेरे लेये चिरस्थायिनी सम्पत्ति के साधक हों ।</div><div><br></div><div>ललाटचत्वरज्वलद्धनंजयस्फुलिंगभा-</div><div> निपीतपंचसायकं नमन्निलिम्पनायकम् ।</div><div>सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरम्</div><div> महाकपालि सम्पदे शिरो जटालमस्तु न: ।।६ ।।</div><div><br></div><div>जिसने ललाट- वेदी पर प्रज्वलित हुई अग्नि के स्फुलिंगों के तेज से कामदेव को नष्ट कर डाला था , वह ( श्रीमहादेवजी का ) उन्नत विशाल ललाटवाला जटिल मस्तक हमारी सम्पत्ति का साधक हो।</div><div><br></div><div>करालभालपट्टिकाधगद्धगद्धगज्जवल- </div><div> द्धनंजयाहुतीकृतप्रचण्डपंचसायके ।</div><div>धराधरेन्द्रनन्दिनीकुचाग्रचित्रपत्रक- </div><div> प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मंम ।। ७ ।।</div><div><br></div><div>जिन्होंने अपने विकराल भालपट्ट पर धक् - धक् जलती हुई अग्नि में प्रचण्ड कामदेव को हवन कर दिया था , गिरिराजकिशोरी के स्तनों पर पत्रभंग - रचना करने के एकमात्र कारीगर उन भगवान् त्रिलोचन में मेरी धारणा लगी रहे ।</div><div><br></div><div>नवीनमेघमण्डलीनिरूद्धदुर्धंरस्फुर-</div><div> त्कुहूनिशीथिनीतम:प्रबन्धबद्धकन्धर: ।</div><div>निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिन्धुर:</div><div> कलानिधानबन्धुर:श्रियंजगद्धुरन्धर: ।। ८ ।।</div><div><br></div><div>जिनके कण्ठ में नवीन मेघमाला से घिरी हुई अमावस्या की आधी रात के समय फैलते हुये दुरूह अन्धकार के समान श्यामता अंकित है, जो गजचर्म लपेटे हुये हैं , वे संसारभार को धारण करने वाले चन्द्रमा से मनोहर कान्तिवाले भगवान् गंगाधर मेरी सम्पत्ति का विस्तार करें ।</div><div><br></div><div>प्रफुल्लनीलपंकजप्रपंचकालिमप्रभा-</div><div> वलम्बिकण्ठकन्दलीरूचिप्रबद्धकन्धरम् ।</div><div> स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं </div><div> गजच्छिदान्धकच्छिदं तमन्तकच्छिदं भजे ।। ९ ।।</div><div><br></div><div>जिनका कण्ठदेश खिले हुये नीलकमल समूह की श्यामप्रभा का अनुकरण करने वाली हरिणी की सी छवि वाले चिन्ह से सुशोभित है तथा जो कामदेव , त्रिपुर , भव ( संसार ) , दक्ष-यज्ञ , हाथी , अन्धकासुर और यमराज का भी उच्छेदन करने वाले हैं , उन्हें मैं भजता हूँ।</div><div><br></div><div>अखर्वसर्वमंगलाकलाकदम्बमंजरी-</div><div> रसप्रवाहमाधुरीविजृम्भणामधुव्रतम् ।</div><div> स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं</div><div> गजान्तकान्धकान्तकं तमन्तकान्तकं भजे ।।१० ।।</div><div><br></div><div>जो अभिमानरहित पार्वती के कलारूप कदम्बमंजरी के मकरन्द स्रोत की बढ़ती हुई माधुरी को पान करने वाले मधूप हैं तथा कामदेव , त्रिपुर , भव , दक्ष-यज्ञ , हाथी , अन्धकासुर और यमराज का भी अंत करने वाले हैं , उन्हें मैं भजता हूँ।</div><div><br></div><div>जयत्वदभ्रविभ्रमभ्रमद्भुजंगमश्वस-</div><div> द्विनिर्गमत्क्रमस्फुरत्करालभालहव्यवाट् ।</div><div>धिमिद्विमिद्विमिद्ध्वनन्मृदंगतुंगमंगल-</div><div> ध्वनिक्रमप्रवर्तितप्रचण्डताण्डव: शिव: ।। ११ ।।</div><div><br></div><div>जिनके मस्तक पर बड़े वेग के साथ घूमते हुये भुजंग के फुफकारने से ललाट की भयंकर अग्नि क्रमश: धधकती हुई फैल रही है , धिम-धिम बजते हुये मृदंग के गम्भीर मंगल घोष के क्रमानुसार जिनका प्रचण्ड ताण्डव हो रहा है, उन भगवान् शंकर की जय हो ।</div><div><br></div><div>दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजंगमौक्तिकस्रजो-</div><div> र्गंरिष्ठरत्नलोष्ठयो: सुहृद्विपक्षपक्षयो: ।</div><div>तृणारविन्दुचक्षुषो: प्रजामहीमहेन्द्रयो: </div><div> समप्रवृत्तिक: कदासदाशिवं भजाम्यहम् ।।१२ ।।</div><div><br></div><div>पत्थर और सुन्दर बिछौनों में , सांप और मुक्ता की माला में , बहुमूल्य रत्न तथा मिट्टी के ढेले में , मित्र या शत्रु पक्ष में , तृण अथवा कमललोचना तरूणी में , प्रजा और पृथ्वी के महाराज में समानभाव रखता हुआ मैं कब सदाशिव को भजूँगा ।</div><div><br></div><div>कदानिलिम्पनिर्झरीनिकुंजकोटरे बसन्</div><div> विमुक्तदुर्मति: सदा शिर:स्थमंजलिं वहन् ।</div><div>विलोललोललोचनो ललामभाललग्नक:</div><div> शिवेति मन्त्रमुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम् ।।१३ ।।</div><div><br></div><div>सुन्दर ललाटवाले भगवान् चन्द्रशेखर में दत्तचित्त हो अपने कुविचारों को त्यागकर गंगाजी के तटवर्ती निकुंज के भीतर रहता हुआ सिरपर हाथ जोड़ डबडबाई हुई हिह्वल आँखों से 'शिव ' मन्त्र का उच्चारण करता हुआ मैं कब सुखी होऊँगा ।</div><div><br></div><div>इमं हि नित्यमेवमुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं </div><div> पठन्स्मरन्ब्रु वन्नरो बिशुद्धिमेति सन्ततम् ।</div><div>हरे गुरौसुभक्तिमाशु यातिनान्यथा गतिं</div><div> विमोहनं हि देहनां सुशंकरस्य चिन्तनम् ।।१४ ।।</div><div><br></div><div>जो मनुष्य इस प्रकार से उक्त उत्तमोत्तम स्तोत्र का नित्य पाठ , स्मरण और वर्णन करता रहता है , वह सदा शुद्ध रहता है और शीघ्र ही सुरगुरू श्रीशंकरजी की अच्छी भक्ति प्राप्त कर लेता है।वह विरूद्धगति को नहीं प्राप्त होता , क्योंकि श्रीशिवजी का अच्छी प्रकार चिंतन प्राणिवर्ग के मोह का नाश करने वाला है ।</div><div><br></div><div>पूजावसानसमये दशवक्त्रगीतं</div><div> य: शम्भुपूजनपरं पठति प्रदोषे ।</div><div>तस्य स्थिरां रथगजेन्द्रतुरंगयुक्तां</div><div> लक्ष्मी सदैव सुमुखी प्रददाति शम्भु: ।।१५ ।।</div><div><br></div><div>सायंकाल में पूजा समाप्त होने पर रावण के गाये हुये इस शम्भुपूजन सम्बन्धी स्तोत्र का जो पाठ करता है , शंकरजी उस मनुष्य को रथ, हाथी, घोड़े से युक्त सदा स्थिर रहनेवाली अनुकूल सम्पत्ति देते हैं।</div><div><br></div><div> ( इति श्री रावणकृतं शिवताण्डवस्तोत्रं सम्पूर्णम् )</div><div><br></div><div><br></div><div><br></div><div><br></div><div><br></div>Shobha Sinhahttp://www.blogger.com/profile/01970011971472839425noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2557317395017594877.post-85359527749957800182017-02-15T13:27:00.001+05:302017-02-25T08:54:54.220+05:30वेदसारशिवस्तोत्रम्<div><br></div><div><font face="Helvetica Neue Light, HelveticaNeue-Light, helvetica, arial, sans-serif"> </font></div><div><font face="Helvetica Neue Light, HelveticaNeue-Light, helvetica, arial, sans-serif"><div class="separator" style="clear: both;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg9lJ0ZxGkADDtzZ5fzyDcgfahR-SXM6ztPBd1__7oS0O5LoTNclkxXZYRv9QvhH4QVhu4-cNZzaJuZYkDLaYhz7DFHJhzJFpN4jyjTd0EhwsTBJvrU7Hm83ux2bPFCPeTZbk-IDuRJpmQ/s640/blogger-image--1003461840.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg9lJ0ZxGkADDtzZ5fzyDcgfahR-SXM6ztPBd1__7oS0O5LoTNclkxXZYRv9QvhH4QVhu4-cNZzaJuZYkDLaYhz7DFHJhzJFpN4jyjTd0EhwsTBJvrU7Hm83ux2bPFCPeTZbk-IDuRJpmQ/s640/blogger-image--1003461840.jpg"></a></div><br></font></div><div><span style="font-family: 'Helvetica Neue Light', HelveticaNeue-Light, helvetica, arial, sans-serif;">पशुनां पतिं पापनाशं परेशं</span></div><div> गजेन्द्रस्य कृत्तिं वसानं वरेण्यम् ।</div><div>जटाजूटमध्ये स्फुरदगांगवारिं </div><div> महादेवमेकं स्मरामि स्मरामि ।।</div><div><br></div><div> पशुओं ( समस्त प्राणिमात्र ) के पति ( रक्षक ) , त्रिविध-ताप -पाप को नष्ट करनेवाले, परमेश्वर स्वरूप एवं कजचर्म धारक , सर्वश्रेष्ठ तथा अपने जटा-जूट में गंगा को लहराने वाले, कामदेव के विनाशक , ऐसे एकमात्र शिव का मैं स्मरण करता हूँ ।।१ ।।</div><div><br></div><div>महेशं सुरेशं सुरारातिनाशं</div><div> विभुं विश्वनाथं विभूत्यंगभूषम् ।</div><div>विरूपाक्ष - मिन्द्वर्क - वह्निं त्रिनेत्रं </div><div> सदानंदमीडे प्रभुं पंचवक्त्रम् ।।२ ।।</div><div><br></div><div>महेश, देवताओं के स्वामी ( सुरेश ) तथा समस्त देवताओं के कष्ट विनाशक, व्यापक , समस्त चराचर के स्वामी भगवान विश्वनाथ अपने समस्त अंगों में विभूति धारण किये हुये , विरूपाक्ष , चन्द्र - सूर्य - वह्निरूप, त्रिनेत्रधारी , सदानंद मग्न , पंचमुख वाले प्रभु शिव की मैं स्तुति करता हूँ।</div><div><br></div><div>गिरीशं गणेशं गले नीलवर्णं</div><div> गवेन्द्राधिरूढं गुणातीतरूपम ।</div><div>भवं भास्वरं भस्मना भूषिताड़्गं</div><div> भवानीकलत्रं भजे पंचवक्त्रम् ।।३ ।।</div><div><br></div><div>आप कैलाश पर्वत के स्वामी , प्रमथादि गुणों के ईश , नीलकंठ स्वरूप , वृषभ ( नन्दी ) पर आरूढ़ , अगणित स्वरूप धारण करने वाले , संसार के आदिकारण भूत , अत्यन्त तेजस्वी , भस्मधारण से विभूषित विग्रह वाले , पार्वती जिनकी अर्धांगिनी हैं , ऐसे पाँच मुखवाले महादेवजी को मैं भजता हूँ।</div><div><br></div><div> शिवाकान्त शम्भो शशांकार्धमौले</div><div> महेशान शूलिन् जटाजूटधारिन् ।</div><div>त्वमेको जगद् - व्यापको विश्वरूप</div><div> प्रसीद प्रसीद प्रभो पूर्णरूप ।।४ ।।</div><div><br></div><div>हे पार्वतीनाथ ! शम्भो ! हे चन्द्रशेखर ! हे त्रिशूलधारक ! जटाजूटधारिन ! हे विश्वरूप ! समस्त चराचर संसार में आप एकमात्र व्यापक हैं , ऐसे हैं पूर्णरूप प्रभु शिवशंकर , आप मुझपर प्रसन्न होइए ।</div><div><br></div><div> परात्मानमेकं जगद् - बीजमाद्यं</div><div> निरीहं निराकारमोंकारवेद्यम् ।</div><div> यतो जायते पाल्यते येन विश्वम् </div><div> तमीशं भजे लीयते यत्र विश्वम् ।।५ ।।</div><div><br></div><div>आप परमात्मा स्वरूप , अद्वितीय , जगत् केआदि कारण , इच्छा - रहित , निराकार तथा प्रणव ( ओंकार ) द्वारा ही वेद्य हैं , आप ही जगत् के उत्पादक , पालक एवं लय करने वाले हैं , ऐसे महादेवजी को मैं भजता हूँ ।</div><div><br></div><div> न भूमिर्न चापो न वह्निर्न वायु -</div><div> र्न चाकाशमास्ते न तन्द्रा न निन्द्रा ।</div><div> न ग्रीष्मो न शीतं न देशो न वेषो</div><div> न यस्याअस्ति मूर्तिस्त्रिमूर्तिं तमीडे ।।६ ।।</div><div><br></div><div>जो न पृथ्वी , जल , अग्नि वायु है तथा जो न आकाश एवं तन्द्रा और निद्रा है , उसी प्रकार जो न ग्रीष्म न शीत है और जिनका न कोई देश है , ऐसे मूर्ति रहित त्रिमूर्ति ( सत्व , रज, तम ) रूप शिव का मैं स्तुति करता हूँ ।</div><div><br></div><div>अजं शाश्वतं कारणं कारणानां</div><div>शिवं केवलं भासकं भासकानाम् ।</div><div>तुरीयं तम:पारमाद्यन्तहीनं </div><div>प्रपद्ये परं पावनं द्वैतहीनम् ।।७ ।।</div><div><br></div><div>आप अजन्मा , नित्य तथा कारण के भी कारण रूप हैं आप ही कल्याण स्वरूप , अद्वितीय हैं , आप ही प्रकाश को भी प्रकाश करने वाले हैं , आप अवस्था त्रय से रहित तुरीयावस्था में ही सर्वदा स्थित हैं एवं आप अज्ञान से भी परे , अनादि एवं अनन्त हैं , ऐसे परम पावन , द्वैत रहित , (अद्वैत रूप ) आपकी शरण में रहकर मैं आपको प्रणाम करता हूँ।</div><div><br></div><div>नमस्ते नमस्ते विभो विश्वमूर्ते !</div><div> नमस्ते नमस्ते चिदानन्दमूर्ते ! ।</div><div>नमस्ते नमस्ते तपोयोगगम्य</div><div> नमस्ते नमस्ते श्रुतिज्ञानगम्य ।।८ ।।</div><div><br></div><div>हे विश्वमूर्ति ! हे विभु ! आपको नमस्कार है । हे चिदानन्द मूर्तिरूप शिव ! आपको मेरा नमस्कार है , हे तप एवं योगगम्य प्रभो ! आपको नमस्कार है तथा हे वेदविद् भगवान् ! आपको मेरा नमस्कार है ।</div><div><br></div><div>प्रभो शूलपाणे विभो विश्वनाथ !</div><div> महादेव शम्भो महेश त्रिनेत्र ।</div><div> शिवाकान्त शान्त स्मरारे पुरारे !</div><div> त्वदन्यो वरेण्यो न मान्यो न गण्य: ।।९ ।।</div><div><br></div><div>हे प्रभो ! शूलपाणि ! विभु ! विश्वनाथ ! महादेव ! शम्भु ! हे महेश ! हे त्र्यम्बक ! हे शिवा ( पार्वती ) वल्लभ ! हे शान्तरूप ! हे कामादि तथा त्रिपुरारी ! आपके अतिरिक्त न तो कोई भी देवगणों में श्रेष्ठ है न मान्य है एवं गणनीय भी कोई नहीं है ।</div><div><br></div><div>शम्भो महेश करूणामय शूलपाणे !</div><div> गौरीपते पशुपते पशुपाशनाशिन् ! ।</div><div>काशीपते करूणया जगदेतकेक-</div><div> स्त्वं हंसि पासि विदधासि महेश्वरोअसि ।। १० ।।</div><div><br></div><div>हे शम्भो ! हे महेश ! हे करूणा - वरूणालय ! हे शूलपाणि , हे गौरीपति , पशुपति , हे संसार के पाश विध्वंसक ! हे काशीपति ! आप ही एकमात्र इस जगत् के उत्पत्ति , स्थिति एवं लयकारक हो तथा आप ही एकमात्र इस जगत् के स्वामी हो।</div><div><br></div><div>त्वत्तो जगद् भवति देव भव स्मरारे !</div><div> त्वय्येव तिष्ठति जगन्मृड विश्वनाथ ! ।</div><div>त्वय्येव गच्छति लयं भजदेतदीश !</div><div> लिंगात्मकं हर चराचरविश्वरूपिन् ! ।।११ ।।</div><div><br></div><div>हे देव ! हे शंकर ! हे कन्दर्प- दर्पविदारक ! हे ईश ! हे विश्वनाथ ! हे हर ! यह लिंग स्वरूप सम्पूर्ण जगत् आपसे ही उत्पन्न होता है तथा आप में ही स्थित है और आप में ही लीन होता है ।</div><div><br></div><div> ( इस प्रकार श्रीशंकराचार्य रचित वेदसारशिवस्तोत्र समाप्त ।)</div><div><br></div>Shobha Sinhahttp://www.blogger.com/profile/01970011971472839425noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-2557317395017594877.post-64175202405229399862017-02-12T17:15:00.001+05:302017-02-14T17:59:28.051+05:30यशोदाजी के मायके से जब पंडित आये?श्रीयशोदाजी के मायके से एक ब्राह्मण गोकुल आये।नंदरायजी के घर बालक का जन्म हुआ है,यह सुनकर आशीर्वाद देने आये थे।मायके से आये ब्राह्मण को देखकर यशोदाजी को बड़ा अानंद हुआ।पंडितजी के चरण धोकर , आदर सहित उनको घर में बिठायाऔर उनके भोजन के लिये योग्य स्थान गोबर से लिपवा दिया।पंडितजी से बोली ,देव आपकी जो इच्छा हो भोजन बना लें।यह सुनकर विप्र का मन अत्यन्त हर्षित हुआ।विप्र ने कहा बहुत अवस्था बीत जाने पर विधाता अनुकूल हुए, यशोदाजी! तुम धन्य हो जो ऐसा सुन्दर बालक का जन्म तुम्हारे घर हुआ।<div><br></div><div> यशोदाजी गाय दुहवाकर दूध ले आईं ,ब्राह्मण ने बड़ी प्रसन्नता से घी मिश्री मिलाकर खीर बनायी।खीर परोसकर वो भगवान हरी को भोग लगाने के लिये ध्यान करने लगे।जैसे ही आँखे खोली तो विप्र देव ने देखा कन्हाई खीर का भोग लगा रहे हैं।वे बोले यशोदाजी! आकर अपने पुत्र की करतूत तो देखो, इसने सारा भोजन जूठा कर दिया।ब्रजरानी दोनो हाथ जोड़कर प्रार्थना करने लगी ,विप्रदेव बालक को क्षमा करें और कृपया फिर से भोजन बना लें।व्रजरानी दुबारा दूध घी मिश्री तथा चावल ले आयीं और कन्हाई को घर के भीतर ले गयीं ताकि वो कोई गलती न करें।विप्र अब पुन: खीर बनाकर अपने अराध्य को अर्पित कर ध्यान करने लगे, कन्हाई फिर वहाँ आकर खीर का भोग लगाने लगे।विप्रदेव परेशान हो गये।मैया मोहन को गुस्से से कहती हैं - कान्हा लड़कपन क्यों करते हो?तुमने ब्राह्मण को बार-बार खिजाया( तंग) है। इस तरह बिप्रदेव जब-जब भोग लगाते हैं , कन्हाई आकर तभी जूठा कर देते हैं।अब माता परेशान होकर कहने लगी ' कन्हाई मैंने बड़ी उमंग से ब्राह्मणदेव को न्योता दिया था और तू उन्हें चिढ़ाता है?जब वो अपने ठाकुरजी को भोग लगाते हैं, तब तू यों ही भागकर चला जाता है और भोग जूठा कर देता है' । यह सुनकर कन्हाई बोले---- मैया तू मुझे क्यों दोष देती है,विप्रदेव स्वयं ही विधि विधान से मेरा ध्यान कर हाथ जोड़कर मुझे भोग लगाने के लिये बुलाते हैं,हरी आओ , भोग स्वीकार करो।मैं कैसे न जाऊँ।</div><div><br></div><div> ब्राह्मण की समझ में बात आ गयी ।अब वे ब्याकुल होकर कहने लगे , प्रभो ! अज्ञानवश मैंने जो अपराध किया है , मुझे क्षमा करें।यह गोकुल धन्य है ,श्रीनन्दजी और यशोदाजी धन्य हैं , जिनके यहाँ साक्षात् श्रीहरि ने अवतार लिया है।मेरे समस्त पुन्यों एवं उत्तम कर्मों का फल आज मुझे मिल गया , जो दीनबन्धु प्रभु ने मुझे साक्षात दर्शन दिया।सूरदासजी कहते हैं कि विप्रदेव बार बार हे अन्तर्यामी ! हे दयासागर !मुझपर कृपा कीजिये, भवसे पार कीजिये ,और यशोदाजी के आँगन मे लोटने लगे।</div><div><br></div><div><br></div>Shobha Sinhahttp://www.blogger.com/profile/01970011971472839425noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2557317395017594877.post-10821389959520309082017-02-03T14:40:00.001+05:302017-06-22T11:40:04.493+05:30Krishnashtakam<p dir="ltr">वसुदेव-सुतं देवं कंस-चाणूर-मर्दनम्</p>
<p dir="ltr">देवकी-परमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद् गुरुम् ||</p>
<p dir="ltr"><b>vasudeva-sutam devam kamsa-chAnUra-mardanam</b></p>
<p dir="ltr"><b>devakI-paramAnandam krishnam vande jagadgurum</b></p>
<p dir="ltr">अतसीपुष्पसङ्काशं हार-नूपुर-शोभितम्</p>
<p dir="ltr">रत्न-कङ्कण-केयूरम कृष्णं वन्दे जगद् गुरुम् ||</p>
<p dir="ltr"><b>atasIpshpasankAsham hAra-nUpura-shobhitam</b></p>
<p dir="ltr"><b>ratna-kankaNa-keyuram krishnam vande jagadgurum</b></p>
<p dir="ltr">कुटिलालक-संयुक्तं पूर्णचंद्र-निभाननम्</p>
<p dir="ltr">विलसत्-कुण्ड्लधरं कृष्णं वन्दे जगद् गुरुम् ||</p>
<p dir="ltr"><b>kutilAlaka-samyuktam pUrNachandra-nibhAnanam</b></p>
<p dir="ltr"><b>vilasat-kundaladharam krishnam vande jagadgurum</b></p>
<p dir="ltr">मंदारगन्ध-संयुक्तं चारुहासं चतुर्भुजं</p>
<p dir="ltr">बर्हि-पिच्छावचूडाङ्गं कृष्णं वन्दे जगद् गुरुम् ||</p>
<p dir="ltr"><b>mandAragandha-samyuktam chAruhAsam chaturbhujam</b></p>
<p dir="ltr"><b>barhi-picchAvachUdAngam krishnam vande jagadgurum</b></p>
<p dir="ltr">उत्फुल्लपद्म-पत्राक्षं नीलजीमूत-सन्निभम्</p>
<p dir="ltr">याद्वानां शिरोरत्नं कृष्णं वन्दे जगद् गुरुम् ||</p>
<p dir="ltr"><b>utphullapadma-patrAksham nIlajImoota-sannibham</b></p>
<p dir="ltr"><b>yAdavAnAm shiroratnam krishnam vande jagadgurum</b></p>
<p dir="ltr">रुक्मिणीकेली -संयुक्तं पीताम्बर-सुशोभितम्</p>
<p dir="ltr">अवाप्त-तुलासीगंधम कृष्णं वन्दे जगद् गुरुम् ||</p>
<p dir="ltr"><b>rukminIkeli-samyuktam peetAmbara-sushobhitam</b></p>
<p dir="ltr"><b>avapta-tulasIgandham krishnam vande jagadgurum</b></p>
<p dir="ltr">गोपिकानां कुचद्वन्द्व-कुन्कुमाङ्कित-वक्षसम्</p>
<p dir="ltr">श्रीनिकेतं महेष्वासं कृष्णं वन्दे जगद् गुरुम् ||</p>
<p dir="ltr"><b>gopikAnAm kuchacvadvandva kumkumAnkita vakshasam</b></p>
<p dir="ltr"><b>shrIniketam maheshvAsam krishnam vande jagadgurum</b></p>
<p dir="ltr">श्रीवात्साङकं महोरस्कं वनमाला-विराजितम्</p>
<p dir="ltr">शङ्कचक्र-धरं देवं कृष्णं वन्दे जगद् गुरुम् ||</p>
<p dir="ltr"><b>shrIvatsAnkam mahoraskam vanamAlA virAjitam</b></p>
<p dir="ltr"><b>shankachakra-dharam devam krishnam vande jagadgurum</b></p>
<p dir="ltr">कृष्णाष्टकं-इदं पुण्यं प्रातरुत्थाय यः पठेत्</p>
<p dir="ltr">कोटिजन्म-कृतं पापं स्मरणेन विनश्यति ||</p>
<p dir="ltr"><b>krishnAshtakam-idam puNyam prAtarutthAya yah paTet</b></p>
<p dir="ltr"><b>kotijanma-krutam pApam smaraNena vinashyati</b><br></p>
Shobha Sinhahttp://www.blogger.com/profile/01970011971472839425noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2557317395017594877.post-76511281089276430322017-01-10T16:30:00.001+05:302017-02-01T20:39:51.977+05:30कान्हा ने जब गोपियों की शिकायत की यशोदा मैया से।मैया जब मैं घर से चलूँ , बुलावें ग्वालिन सादर मोय ।<div>अचक हाथ को झालो देके, मीठी बोले देवर कहके ।</div><div>निधरक हो जायँ साँकर देके , झपट उतारे काछनी ,</div><div>मुरली लेयँ छिनाय । मैं बालक ये धींगरी ,</div><div>इनसे कहा बसाय । खुद नाचे अरू मोयँ नचावें ।</div><div>क्या - क्या बताऊँ तोको मोरी मैया ।मैया जब ...... ।। १ ।।</div><div><br></div><div>एक दिना एक चतुर बहुरिया, ले गई मेरी पकड़ अँगुरिया ।</div><div>छोटी सी उसकी राम कुठरिया, गोरस की मटकी तभी ,</div><div>धरी पास तत्काल । माखन दूँगी घनों सो ,चैंटी बीनो लाल।</div><div>मैंने बाकी चैंटी बीनी । वह गई निधरक सोय ।।मैया जब ... ।।२ ।।</div><div><br></div><div>एक दिना की सुन मोरी मैया, मैं बैठो हो कदम की छैंया ।</div><div>ढिग बैठो बलदाऊ भैया ,एक आई जल भरन को ,</div><div>फिसल गयो वाको पाँव ।मेरे गोहन पड़ गई और बोली , </div><div>धक्का दीनों श्याम , दे दे गुलचा गाल लाल किये ।</div><div>मैं ठाड़ो रह्यो रोय ,मोरी मैया।मैया जब ........ ।। ३ ।।</div><div><br></div><div>तेरे मुँह पर करें बड़ाई , पाछे वो तेरी करें बुराई ।</div><div>ऐसी ब्रज की ढीठ लुगाई , इनकी तु पतियाती ।</div><div>और मुझे झूठा बनाती , इनको समझती शाह।</div><div>चोर नाम मेंरो धरो , होन न देंगी मेरो ब्याह ।</div><div>मेरे साथ ये ऐसों करती , जैसो करें न कोय । मैया जब .. ।। ४ ।।</div><div><br></div><div><br></div><div><br></div><div><br></div><div><br></div>Shobha Sinhahttp://www.blogger.com/profile/01970011971472839425noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2557317395017594877.post-78256315319420748852016-11-13T22:10:00.001+05:302016-11-23T22:03:10.252+05:30ShriNandKumarashtakam ( श्रीनंदकुमाराष्टकम् )<div> <img src="webkit-fake-url://765a3e4d-1c30-40a1-ac01-caa509fa9aba/imagejpeg" style="font-family: 'Helvetica Neue Light', HelveticaNeue-Light, helvetica, arial, sans-serif;"></div><div><br></div><div><br></div>सुंदर गोपालं उरवनमालं नयन विशालं दु:ख हरम् ,<div>वृंदावनचंद्रम् आनंदकन्दम् परमानंदम् धरणीधरम् ।</div><div>वल्लभ घनश्यामं पूर्णकामं अत्यभिरामं प्रीतिकरम् ,</div><div>भजनंदकुमारं सर्वसुखसारं तत्व विचारं ब्रह्मपरम् ।।१ ।।</div><div><br></div><div>सुंदर वारिजवदनं निर्जित मदनं आनंद सदनं मुकुटधरम् ,</div><div>गुंजाकृतिहारं विपिनविहारं परमोदारं चीरहरम् ।</div><div>वलल्भ पटपीतं कृत उपवीतं कर नवनीतं विबुधवरम् ,</div><div>भजनंदकुमारं सर्वसुखसारं तत्व विचारं ब्रह्मपरम् ।। २ ।।</div><div><br></div><div>शोभित सुखमूलं यमुनाकूलं निपट अतूलं सुखद वरम् ,</div><div>मुख मण्डित रेणुं चारित धेनुं वादित वेणुं मधुर सूरम् ।</div><div>वल्लभ मति विमलं शुभपद कमलं नखरुचि विमलं तिमिर हरम् ,</div><div>भजनंदकुमारं सर्वसुखसारं तत्व विचारं ब्रह्मपरम् ।। ३ ।।</div><div><br></div><div>शिर मुकुट सुदेशं कुंचित केशं नटवर वेषं कामवरम् ,</div><div>मायाकृत मनुजं हलधर अनुजं प्रतिहतदनुजं भारहरम् ।</div><div>वल्लभव्रजपालं सुभगसुचालं हितमनुकालं भाववरम् ,</div><div>भजनंदकुमारं सर्वसुखसारं तत्व विचारं ब्रह्मपरम् ।। ४ ।।</div><div><br></div><div>इन्दीवरभासं प्रकट सुरासं कुसुम विकासं वंशीधरम् ,</div><div>जित मन्मथ मानं रूप निधानं कृतकलगानं चित्तहरम् ।</div><div>वल्लभ मृदु हासं कुंज निवासं विविध विलासं ब्रह्मपरम् ।। ५ ।।</div><div><br></div><div>अति परम प्रवीणं पालितदीनं भक्ताधीनं कर्म करम् ,</div><div>मोहनमति धीरं कलिबलिवारं हत परवीरं तरल तरम् ।</div><div>वल्लभ व्रज रमणं वारिज वदनं जलधर शमनं शैलधरम् ,</div><div>भजनंदकुमारं सर्वसुखसारं तत्व विचारं ब्रह्मपरम् ।। ६ ।।</div><div><br></div><div>जलधर द्युतिकायं ललितत्रिभंगं बहु कृतिरंगं रसिकवरम् ,</div><div>गोकुल परिवारं मदनाकारं कुंज विहारं गूढ़नरम् ।</div><div>वल्लभ व्रजचंद्रम् सुभग सुछंदम् परमानंदम भ्रांतिहरम् ,</div><div>भजनंदकुमारं सर्वसुखसारं तत्व विचारं ब्रह्मपरम ।। ७ ।।</div><div><br></div><div>वंदित युग चरणं पावनकरणं जगदुद्धरणं विमलधरं ,</div><div>कालिय शिर गमनं कृतफणि नमनं घातितयमनं मृदुल तरम् ।</div><div>वल्लभदु:खहरणं निर्मलचरणं अशरणशरणं मुक्तिकरम् ,</div><div>भजनंदकुमारं सर्वसुखसारं तत्व विचारं ब्रह्मपरम् ।। ८ ।।</div><div><br></div><div>।। इति श्रीमद् वल्लभाचार्य विरचितं नंदकुमाराष्टकं सम्पूर्णम् ।।</div>Shobha Sinhahttp://www.blogger.com/profile/01970011971472839425noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2557317395017594877.post-28369603396638523672016-11-03T17:10:00.001+05:302016-11-11T12:06:37.782+05:30ShriDamodarashtkam ( श्रीदामोदराष्टकम् )<div><div class="separator" style="clear: both;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhdYTaUqsMnnwZD5bUyjo3bCQ1yq83YoQaOe5ByEGBP4Gf2Bvkx0FbnhB_CZpVNPJXFlFM5ClrGa1552QLXbSD3rW1yRII1An8_V5Jh9H0mNm6XfTMce7tD9ED4TGg7oLdsOyJsO8on6lc/s640/blogger-image-758804525.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhdYTaUqsMnnwZD5bUyjo3bCQ1yq83YoQaOe5ByEGBP4Gf2Bvkx0FbnhB_CZpVNPJXFlFM5ClrGa1552QLXbSD3rW1yRII1An8_V5Jh9H0mNm6XfTMce7tD9ED4TGg7oLdsOyJsO8on6lc/s640/blogger-image-758804525.jpg"></a></div><br></div><div><br></div>नमामीश्वरं सच्चिदानंदरूपं<div>लसत्कुण्डलं गोकुले भ्राजमानम् ।</div><div>यशोदाभियोलूखलाद्धावमानं</div><div>परामृष्टमत्यं ततो द्रुत्य गोप्या ।।१ ।।</div><div><br></div><div>( जिनके कपोलों पर लटकते मकराकृत-कुंडल क्रीड़ा कर रहे हैं, जो गोकुल के चिन्मय धाम में परम शोभायमान हैं, जो दूध की हांडी फोड़ने के कारण माँ यशोदा से भयभीत होकर ऊखल के उपर से कूदकर अत्यन्त वेग से दौड़ रहे हैं और जिन्हें माँ यशोदा ने उनसे भी अधिक वेग से दौड़कर पकड़ लिया है, ऐसे सच्चिदानंद- स्वरूप सर्वेश्वर श्रीकृष्ण की मैं वन्दना करता हूँ।)</div><div><br></div><div>रुदन्तं मुहुर्नेत्रयुग्मं मृजन्तं</div><div>कराम्भोज-युग्मेन सातंकनेत्रं ।</div><div>मुहु:श्वास कम्प - त्रिरेखांक - कण्ठ</div><div>स्थित ग्रैव - दामोदरं भक्तिबद्धम् ।। २ ।।</div><div><br></div><div>( जननी के हाथ में लाठी को देखकर मार खाने के भय से जो रोते-रोते बारंबार अपनी दोनों आँखों को अपने हस्तकमल से मसल रहे हैं, जिनके दोनों नेत्र भय से अत्यन्त विह्वल हैं, रूदन के कारण बारंबार साँस लेने के कारण तीन रेखाओं से युक्त शंख रूपी जिनके कंठ में पड़ी मोतियों की माला काँप रही है, और जिनका उदर ( माँ यशोदा की वात्सल्य भक्ति द्वारा ) रस्सी से बँधा हुआ है, उन सच्चिदानन्द - स्वरूप सर्वेश्वर श्रीकृष्ण की मैं वंदना करता हूँ )</div><div><br></div><div>इतिदृक् स्वलीलाभिरानंद कुण्डे</div><div>स्वघोषं निमज्जन्तमाख्यापयन्तम् ।</div><div>तदीयेशितज्ञेषु भक्तैर्जितत्वं</div><div>पुन: प्रेमतस्तं शतावृत्ति वन्दे ।। ३ ।।</div><div><br></div><div>( जो इस प्रकार की बाल्य- लीलाओं द्वारा गोकुलवासियों को आनन्द सरोवर में नित्यकाल सराबोर करते रहते हैं,और जो ऐश्वर्यपूर्ण ज्ञानी भक्तों के समक्ष यह उजागर करते हैं कि " मैं केवल ऐश्वर्यविहीन प्रेम और भक्ति द्वारा ही जीता जा सकता हूँ," उन दामोदर श्रीकृष्ण की मैं प्रेमपूर्वक बारम्बार वंदना करता हूँ।)</div><div><br></div><div>वरं देव ! मोक्षं न मोक्षावधिं वा</div><div>न चान्यं वृणेअहं वरेशादपीह ।</div><div>इदं ते वपुर्नाथ गोपाल बालं</div><div>सदा मे मनस्याविरस्तां किमन्यै: ।।४ ।।</div><div><br></div><div>( हे देव ! आप सब प्रकार से वर देने में पूर्ण सक्षम हैं, तो भी मैं आप से मोक्ष या मोक्ष की चरम सीमारूप वैकुण्ठ आदि लोक भी नहीं चाहता और न ही अन्य कोई ( नवधा भक्ति द्वारा प्राप्त किये जाने वाले ) वरदान चाहता हूँ। हे नाथ ! मैं तो केवल एक ही वर चाहता हूँ कि आपका यह बालगोपाल रूप मेरे हृदय में सदा - सदा के लिये विराजमान रहे।मुझे अन्य दूसरे वरदानों से कोई प्रयोजन नहीं है।)</div><div><br></div><div><div class="separator" style="clear: both;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjmEapwt8MUeb9nHlkfU3zxfG5rJiM5gsCOqqB7Jx2KzaUSBhd1xvAY0aVkfFu2OJpk5fJS7Qcs7qcHBjyZxl4KpEIC3l0UicwUp5KZzylkgaPDLVyF7yfUi4tCOXLk4KbY8PtSxTPRCP4/s640/blogger-image--976298648.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjmEapwt8MUeb9nHlkfU3zxfG5rJiM5gsCOqqB7Jx2KzaUSBhd1xvAY0aVkfFu2OJpk5fJS7Qcs7qcHBjyZxl4KpEIC3l0UicwUp5KZzylkgaPDLVyF7yfUi4tCOXLk4KbY8PtSxTPRCP4/s640/blogger-image--976298648.jpg"></a></div><br></div><div><br></div><div>इदं ते मुखाम्भोजमत्यन्तनीलै-</div><div>र्वृतं कुन्तलै: स्निग्ध- रक्तैश्च गोप्या ।</div><div>मुहुश्चुम्बितं बिम्बरक्ताधरं मे </div><div>मनस्याविरस्तामलं लक्षलाभै: ।।५ ।।</div><div><br></div><div>( हे देव ! कुछ - कुछ लालिमा लिये हुये कोमल तथा घुँघराले बालों से घिरा आपका मुखकमल माँ यशोदा द्वारा बारम्बार चुम्बित है और आपके होंठ बिम्ब फल के समान लाल हैं। आपका यह मधुर रूप नित्यकाल तक मेरे हृदय में प्रकट होता रहे।मुझे लाखों प्रकार के अन्य लाभों की आवश्यकता नहीं है।)</div><div><br></div><div>नमो देव दामोदरानन्त विष्णो </div><div>प्रसीद प्रभो दु:ख जलाब्धि- मग्नम् ।</div><div>कृपादृष्टि- वृष्टियातिदीनं बतानु</div><div>गृहाणेश मामज्ञमेध्यक्षि दृश्य: ।।६ ।।</div><div><br></div><div>( हे परमदेव ! हे दामोदर ! हे अनन्त ! हे विष्णो ! हे प्रभो ! हे भगवन ! मुझपर प्रसन्न होवें । मैं दु:खों के समुद्र में डूबा जा रहा हूँ।अतएव आप अपनी कृपादृष्टि रूपी अमृतवर्षा कर मुझ दीन - हीन शरणागत पर अनुग्रह कीजिये एवं मेरे नेत्रों के समक्ष साक्षात् दर्शन दीजिये।) </div><div><br></div><div>कुबेरात्मजौ बद्धमूर्त्यैव यद्वत्</div><div>त्वयामोचितौ भक्तिभाजौ कृतौ च ।</div><div>तथा प्रेमभक्तिं स्वकां मे प्रयच्छ </div><div>न मोक्षे गृहो मेअस्ति दामोदरेह ।। ७ ।।</div><div><br></div><div>( हे दामोदर ! जिस प्रकार आपने दामोदर रूप से ऊखल में बँधे रहकर भी नलकूबर और मणिग्रीव नामक कुबेर के दोनों पुत्रों को नारदमुनि के शाप से मुक्त करके अपनी भक्ति प्रदान की थी, उसी प्रकार मुझे भी आप अपनी प्रेमभक्ति प्रदान कीजिये।यही मेरा एकमात्र आग्रह है।किसी अन्य प्रकार के मोक्ष की मेरी तनिक भी इच्छा नहीं है।)</div><div><br></div><div>नमस्तेअस्तु दाम्ने स्फुरद्धीप्तिधाम्ने</div><div>त्वदीयोदरायाथ विश्वस्य धाम्ने ।</div><div>नमो राधिकायै त्वदीय - प्रियायै</div><div>नमोअनंत लीलाय देवाय तुभ्यम् ।। ८ ।।</div><div><br></div><div>( हे दामोदर ! आपके उदर को बाँधने वाली महान् रस्सी को प्रणाम है, निखिल ब्रह्मतेज के आश्रय और सम्पूर्ण विश्व के आधारस्वरूप आपके उदर को नमस्कार है।आपकी प्रियतमा श्री राधारानी के चरणों में मेरा बारम्बार प्रणाम है और हे अनन्त लीलाविलास करने वाले भगवन् ! मैं आपको भी सैकड़ों प्रणाम अर्पित करता हूँ।</div><div><br></div><div><div class="separator" style="clear: both;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgnu50doJOlprcrEWC8i31YJ1POafPc1lfkChfwaH5tWPArAi-uJdqiBsQncsr8ml-4xaeMTl5vPFG0on1wSBvBvZ7AHhgbK01aw_0D2i0c2qJOPELD-_xq1jUmMwrok2055pl4-hrBr6E/s640/blogger-image-379993763.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgnu50doJOlprcrEWC8i31YJ1POafPc1lfkChfwaH5tWPArAi-uJdqiBsQncsr8ml-4xaeMTl5vPFG0on1wSBvBvZ7AHhgbK01aw_0D2i0c2qJOPELD-_xq1jUmMwrok2055pl4-hrBr6E/s640/blogger-image-379993763.jpg"></a></div><br></div><div><br></div><div><br></div><br><div class="separator" style="clear: both;"><br></div><br><div class="separator" style="clear: both;"><br></div>Shobha Sinhahttp://www.blogger.com/profile/01970011971472839425noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2557317395017594877.post-23407401719820591222016-10-12T16:33:00.001+05:302016-10-14T17:27:23.070+05:30व्रज भूमि के गिरिराज पर्वत ( गोवर्धन ) की कथा।गोवर्धन पर्वत अपना सर्वस्व श्रीकृष्ण को ही मानते हैं।यह पर्वत अपने पत्र ,पुष्प ,फल ,और जल को श्रीकृष्ण का ही मानकर उन्हें सदा समर्पित करता है।जब प्रभु तथा उनके सखाओं को भूख लगती है,तो नाना प्रकार के फल उन्हें अर्पित करता है,और प्यास लगने पर अपने मधुर जल से उन्हें तृप्त करता है।प्रभु को सजाने के लिये तरह-तरह के पुष्प गले के हार के लिये अर्पित करता है।<div><br></div><div> पौराणिक कथानुसार गिरिराज द्रोणपर्वत का पुत्र है।एक बार ऋषि पुलस्त्य ने द्रोणपर्वत से उनके पुत्र गोवर्धन को अपने साथ अन्यत्र ले जाने के लिये विनय किया।तब गोवर्धनपर्वत ने शर्त रखी कि यदि मार्ग में थकान या किसी कारण वश कहीं भी भूमि पर उन्हें रखा गया तो गोवर्धन वहीं अटल हो जायेंगे।</div><div><br></div><div> ऋषि पुलस्त्य जब व्रजभूमि के ऊपर से गुजर रहे थे तो गिरिराज ने अपना वजन इतना बढ़ा लिया कि पुलस्त्य ऋषि को</div><div>गिरिराजपर्वत भूमि पर रखना पड़ा।वह भूमि व्रजभूमि ही थी, और गिरिराज श्रीकृष्ण की पावन स्थली वृन्दावनधाम में सदा-सदा के लिये विराजमान हो गया।ऋषि पुलस्त्य को इस बात पर बड़ा क्रोध आया,और उन्होने गिरिराज को शाप दे दिया कि तू दिन प्रतिदिन तिल-तिल घटता जायगा, और यह क्रम आज भी चल रहा है।</div><div><br></div><div> वाराहपुराण के एक कथानुसार------त्रेता युग में जब प्रभु श्रीराम को समुद्र पर पुल का निर्माण हेतु बड़े-बड़े पाषाण-खण्ड एवं पर्वतों की आवश्यकता हुई, तब हनुमानजी बहुत सारे पाषाणखण्ड उठा कर लाये।उसी समय गिरिराज को भी उठाकर पवनपुत्र ला रहे थे, कि तभी घोषणा हुई कि सेतुबन्ध का कार्य पूर्ण हो चुका है।अब पाषाणखण्ड की कोई आवश्यकता नहीं है।विवश होकर हनुमानजी ने लौटकर पर्वतराज को अपने पूर्व स्थान पर ही स्थापित कर दिया।उस समय गिरिराज को महान क्षोभ हुआ कि मैं प्रभु श्रीराम के कोई काम न आ सका।तब प्रभु उसके अन्तस के क्षोभ का आभास पाते हुये आश्वस्त किया कि द्वापर युग में मेरे कृष्णावतार के समय तुम्हें मेरे चरणरजस्पर्श एवं लीलावलोकन का पूर्ण लाभ मिलेगा।तुम श्रीकृष्ण के परम प्रिय हरिदासवर्य बनोगे।इन्द्रकोप के समय श्रीकृष्ण अपने नख पर धारण कर समस्त ब्रजमंडल की रक्षा का माध्यम तुम्हें ही बनायेंगे।गिरिराज को हरिदासवर्य कहा गया है,अर्थात भगवद्भक्तों में परम श्रेष्ठ हैं।इस पर्वत पर श्रीकृष्ण गोचारण करते हुये अपने चरणों का उन्हें स्पर्ष कराते हैं ,धन्य हैं ये गिरिराज, और धन्य है इनकी कथा।भगवान श्रीकृष्ण ने तो स्वयं गिरिराज बनकर अन्नकूट का भोग स्वीकार किया।यह गिरिराज तो कृष्ण व्रजराज कहलाए।कृष्ण गोपाल तो यह गोवर्धन।गिरिराज के बिना ब्रज की कल्पना नहीं की जा सकती।</div>Shobha Sinhahttp://www.blogger.com/profile/01970011971472839425noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2557317395017594877.post-59179486796482197552016-09-24T16:06:00.001+05:302016-09-24T21:58:02.557+05:30Ki Jane Kaun Se Gun Par ,DayaNinidhi Reejh Jate Hai.( कि जाने कौन से गुण
पर,दयानिधि रीझ जाते हैं।)<div><img src="webkit-fake-url://c60b8a52-8c5d-4f25-bcc9-db0273e7ee40/imagejpeg"></div><div><br></div>कि जाने कौन से गुण पर, दयानिधि रीझ जाते हैं।<div>यही सद् ग्रंथ कहते हैं, यही हरि भक्त गाते हैं ।</div><div>कि जाने कौन-------- ---------------------।</div><div><br></div><div>नहीं स्वीकार करते हैं, निमंत्रण नृप दुर्योधन का।</div><div>विदुर के घर पहुँचकर, भोग छिलकों का लगाते हैं।</div><div>कि जाने कौन से ------------------------------।</div><div><br></div><div>न आये मधुपुरी से गोपियों की, दु: ख कथा सुनकर।</div><div>द्रुपदजा की दशा पर, द्वारका से दौड़े आते हैं ।</div><div>कि जाने कौन से------------------------------- </div><div><br></div><div>न रोये बन गमन में , श्री पिता की वेदनाओं पर ।</div><div>उठा कर गीध को निज गोद में , आँसु बहाते हैं ।</div><div>कि जाने कौन से------------------------------ ।</div><div><br></div><div>कठिनता से चरण धोकर , मिले कुछ 'बिन्दु' विधि हर को</div><div>वो चरणोदक स्वयं केवट के , घर जाकर लुटाते हैं।</div><div>कि जाने कौन से------------------------------------- ।</div>Shobha Sinhahttp://www.blogger.com/profile/01970011971472839425noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2557317395017594877.post-76196437545025889762016-09-16T22:59:00.001+05:302016-12-09T22:28:28.301+05:30Ma Aadi Shakti Ki Katha '( Devi Puran Se ) '<div><div class="separator" style="clear: both;">च<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjcpOx4i-ucANaHu4V6wT8wqky2v_Se80ia0zpIQK2hMh4UeRCP_culyc4CXs7zIUkq6E4PI4bK8nMyns-4w4O5iWwm56tNMy8focWRHhn0il5WSFdiF_WUAl28o9suSSek02cigmeahoo/s640/blogger-image--1087666855.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjcpOx4i-ucANaHu4V6wT8wqky2v_Se80ia0zpIQK2hMh4UeRCP_culyc4CXs7zIUkq6E4PI4bK8nMyns-4w4O5iWwm56tNMy8focWRHhn0il5WSFdiF_WUAl28o9suSSek02cigmeahoo/s640/blogger-image--1087666855.jpg"></a></div><br></div><div><br></div>१८ महापुराणों में देवीपुराण की विशेष महिमा है।इसे 'महाभागवत' के नाम से भी कहा गया है।इस पुराण में ८१ अध्याय और प्राय: ४५०० श्लोक हैं।इस पुराण के आदि उपदेष्टा महादेव भगवान् सदाशिव हैं।उन्होंने इसे देवर्षि नारद को सुनाया था।उसी महादेव-नारद-संवाद को महर्षि वेदव्यासजी ने महर्षि जैमिनी को सुनाया।उसके बाद इस कथा को लोमहर्षण श्रीसूतजी ने नैमिषारण्य में शौनकादि ऋषियों को सुनाया।इस पुराण के उद्भव के विषय में पुराण में एक रोचक कथा प्राप्त होता है , जो इस प्रकार है---<div> एक समय की बात है, नैमिषारण्य में शौनकादि ऋषियों ने जब सूतजी से बड़े आग्रहपूर्वक इस पुराण की कथा सुनाने की प्रार्थना की, तब उन्होंने कहा-- ' जब भगवान् वेदव्यासजी ने अठारह महापुराणों की रचना कर ली, यहाँ तक कि श्रीमद्भागवत की भी रचना हो गयी और उनके हृदय में पूर्ण शान्ति नहीं प्राप्त हो सकी,तब वे देवी-मन्त्र का जप करते हुये हिमालय पर जाकर घोर तपस्या करने लगे।दीर्घकाल के तपस्या के पश्चात् देवी ने बिना प्रकट हुये ही आकाशवाणी की --- 'महर्षि ! आप ब्रह्मलोक जायँ, वहीं आपको मेरा दर्शन होगा और सारे रहस्यों का भी पता चल जायगा।' तब व्यासजी ब्रह्मलोक गये, वहाँ उन्होंने मूर्तिमान् चारों वेदों को प्रणाम कर ब्रह्माजी से ब्रह्म पद की जिज्ञासा की।तब चारों वेदों ने क्रम-क्रम से देवी भगवती को ही साक्षात् परम तत्व बतलाते हुये कहा---' आप अभी हमारे प्रयत्न से देवी का प्रत्यक्षरूप से दर्शन कर सकेंगे ' और फिर चारों वेदों ने मिलकर देवी की दिव्य स्तुति की।परिणामस्वरूप ज्योतिस्वरूपा,सनातनी जगदम्बा प्रकट हो गयीं।उनमें सहस्र सूर्यों की आभा, करोड़ों चन्द्रों की शीतल चन्द्रिका व्याप्त थी और वे सहस्रों भुजाओं में विविध आयुधों को धारण किये हुये दिव्य अलंकरणों से अलंकृत थी।देवी का प्रत्यक्ष दर्शन कर और उनका रहस्य जानकर व्यासजी तत्क्षण जीवनमुक्त हो गये।तत्पश्चात देवी ने उनकी मानसिक अभिलाषा जानकर उन्हें अपने पदतल में संलग्न सहस्रदलकमल का दर्शन कराया, जिसके सहस्रों पत्रों पर देवीपुराण (महाभागवतपुराण) दिव्याक्षरों में अंकित था -------</div><div><br></div><div> ततो भगवती देवी ज्ञात्वा तस्याभिवांछितम् । स्वपादतलसंलग्नं पंकजं समदर्शयत् ।।</div><div> मुनिस्तस्य सहस्रेषु दलेषु परमाक्षरम् । महाभागवतं नाम पुराणं समलोकयत् ।।</div><div> </div><div> ( देवीपुराण ( महाभागवतपुराण ) १।४८- ४९ )</div><div><br></div><div>देवी की कृपा से वही पुराण व्यासजी के हृदय में प्रकाशित हो गया और उन्होंने फिर इस देवीपुराण की रचना की।इस पुराण में मुख्य रूप से देवी के महात्म्य एवं उनके विभिन्न चरित्रों की प्रधानता है, इसी कारण इसे देवीपुराण कहा गया है।इस पुराण में मूल प्रकृति भगवती आद्याशक्ति के गंगा , पार्वती , सावित्री , लक्ष्मी , सरस्वती तथा तुलसी आदि रूपों में विवर्तित होने के रोचक आख्यान विस्तार से आये हैं।मूल प्रकृति के ही दक्षप्रजापति के यहाँ देवी सती के रूप में अवतरित होने की कथा विस्तार से इसमें प्राप्त होती है।इस पुराण में दक्षप्रजापति - यज्ञवर्णन, छाया सती का यज्ञ अग्नि में प्रवेश, सती के अंगों से ५१ ( इक्यावन ) शक्तिपीठों का आविर्भाव, विशेष रूप से कामाख्यायोनिपीठ का वर्णन, मूल प्रकृति द्वारा हिमालय को उपदिष्ट देवीगीता, भगवान् शिवप्रोक्त ललितासहस्रनाम, राजर्षि भगीरथप्रोक्त गंगासहस्रनाम, भगवान् शंकर तथा पार्वती का विवाह, कार्तिकेय के आविर्भाव की कथा, तारकासुरवध एवं गणेशजी का आविर्भाव आदि कथानक वर्णित है।इस पुराण में आये हुये श्रीरामोपाख्यान में रामायण की कथा का सार निरूपित है। साथ ही श्रीकृष्ण चरित्र तथा महाभारत की कथा भी विस्तार से इसमें विवेचित है।देवराज इन्द्र द्वारा देवी की उपासना, गंगा के नदी रूप में परिवर्तित होने की कथा, वामनावतार की कथा तथा विस्तार से गंगा महात्म्य का वर्णन है।यह गंगा महिमा लगभग दस अध्यायों में है।साथ ही तुलसी, आमलक, बिल्व तथा रूद्राक्ष की महिमा का भी विस्तार से निरूपन हुआ है।अन्त में शिवशक्त्यात्मक पार्थिव अन्य लिंगों की पूजा विधि, उपासना, अराधना एवं महिमा वर्णित है।</div><div><br></div>Shobha Sinhahttp://www.blogger.com/profile/01970011971472839425noreply@blogger.com0